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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गत जनम की बात १५० दुःखी होकर राजा ने उसे देश निकाला की सजा दे दी थी। उस ने धीरे-धीरे डाकुओं की टोली बनाई। खुद उस टोली का सरदार बना और फिर इर्दगिर्द के गाँवों को जीतकर उसने अपना छोटा सा साम्राज्य जमा लिया। एक दिन मालवे का एक धनवान सौदागर 'धनदत्त' इसी रास्ते से गुजर रहा था। उसके साथ ढेर सारी संपत्ति सैंकड़ों बैलगाड़ियों में भरी हुई थी। प्रत्येक गाड़ी के साथ रक्षक सैनिकों के दस्ते चल रहे थे। धनदत्त का काफिला ज्यों पर्वत की घाटियों में प्रविष्ट हुआ, नरवीर के गुप्तचरों ने नरवीर को समाचार पहुँचाए । जैसे ही घाटी के बीचों-बीच धनदत्त का काफिला पहुँचा कि अचानक नरवीर और उसके खूखार साथियों ने धावा बोल दिया। रक्षक सैनिकों को मार भगाकर सारी संपत्ति को हथिया लिया। धनदत्त स्वयं अंधेरे की ओट में नौ-दो-ग्यारह हो गया। वह उस इलाके से काफी दूर जा पहुँचा। एक पेड़ की छाया में बैठकर सोचने लगा। 'इस दुष्ट लुटेरे को यदि कैद न किया गया तो यह अनेक मुसाफिरों की जान लेगा। लूट मचाता ही रहेगा। मैं किसी राजा की सहायता लेकर इस के दाँत खट्टे कर दूं। यह भी याद करेगा कि सेर के सिर पर सवा सेर होता ही है।' धनदत्त जैसे पैसे कमाने में होशियार था... वैसे ही उसने युद्ध करने की कला भी सीखी थी। वह सीधा गया मालवे के राजा के पास। राजा से मिलकर सारी बात बताई। अपनी तबाही का ब्यान किया और कहा कि 'यदि आप मुझे कुछ सैनिक दस्ते दें तो मैं कसम खाता हूँ कि उस डाकू के पाँव आपके इलाके से उखाड़ फेकूँगा।' राजा भी नरवीर के आतंक से परेशान तो था ही। उसने धनदत्त की बात को ध्यान से सुना, और उसने अपने चुने हुए सैनिकों के दस्ते धनदत्त को दिये। उसकी फतह की कामना की। सैनिकों को साथ लेकर धनदत्त नरवीर के इलाके के निकट पहुँच गया। उसने बड़ी चालाकी से सारी योजना बनाई। सैनिकों के सहारे चारों ओर से नरवीर के अड्डे को घेर लिया और नरवीर को बाहर निकलने के लिए ललकारा | नरवीर अपने बाँके साथियों के साथ धनदत्त से भिड़ गया। बड़ी बहादुरी से उसने धनदत्त का सामना किया पर धनदत्त के पास सशस्त्र सैनिकों की अनुभवी फौज थी। कुछ घंटों की लड़ाई के अन्त में धनदत्त और उसकी सेना ने नरवीर के तमाम साथियों का सफाया कर दिया। उसके अड्डे को तहसनहस किया | नरवीर अपनी गर्भवती पत्नी को लेकर वहाँ से भाग निकला | नरवीर दौड़ रहा था... पीछे उसकी पत्नी भारी कदमों से चल रही For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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