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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाँच प्रसंग १४५ __ अग्निसंस्कार के समय आचार्यदेव स्वयं उपस्थित रहे। उन विरोधी लोगों में इतनी ताकत कहाँ थी कि हेमचन्द्रसूरिजी के सामने खड़े रह सकें या कोई उपद्रव कर सकें। महाराजा कुमारपाल पाटन में उपस्थित नहीं थे। वे मालवा देश की यात्रा पर थे। उन्हें इस दुर्घटना की जानकारी होने का सवाल ही नहीं था। __आचार्यदेव का दिल खट्टा हो गया था। उन्हें काफी बुरा लगा था। मातासाध्वी के हुए घोर अपमान से वे बौखला उठे थे। उन्होंने शिष्य समुदाय के साथ मालवा की ओर विहार कर दिया। राजा कुमारपाल उज्जैन में थे। आचार्यदेव उज्जैन पहुँचे। गुरुदेव ने महामंत्री उदयन को समाचार भिजवाये। अचानक गुरुदेव का आगमन जानकर उदयन मंत्री सकपका गये । दौड़ते हुए गुरुदेव के पासे आये । गुरूदेव को भावपूर्वक वंदना करके, विनय से बैठे। ____ महामंत्री ने पूछा : 'गुरुदेव, उग्र विहार करके इतने दूर पधारने का प्रयोजन?' आचार्यदेव ने कहा : 'मुझे तत्काल... अविलम्ब राजा से मिलना है।' महामंत्री बोले : 'मैं अभी इसी वक्त महाराज को समाचार भिजवाता हूँ।' गुरुदेव की मुखमुद्रा देखकर महामंत्री ने किसी अमंगल घटना का अनुमान किया। महाराजा को समाचार दिये। महाराजा ने महामंत्री से कहा : 'गुरुदेव को आदरपूर्वक राजमहल में ले आइये ।' महामंत्री ने गुरुदेव की सेवा में राजा की विनति पेश की। राजमहल में पधारने के लिए साग्रह निमन्त्रण दिया। आचार्यदेव राजमहल पर पधारे। राजा ने स्वयं भावपूर्वक गुरुदेव की अगवानी की। राजा ने विनयपूर्वक पूछा : 'गुरुदेव, आपके पवित्र देह में निरामयता तो है ना?' आचार्यदेव ने कहा : 'राजन्, जिस राजा के राज्य में साधु-साध्वी के मृतदेह की भी इज्जत न For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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