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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपूर्व साधर्मिक उद्धार 131 22. अपूर्व साधर्मिक उद्धार / आचार्य श्रीहेमचन्द्रसूरीश्वरजी के उपदेश से राजा कुमारपाल ने कई तरह के सत्कार्य किये थे। देश-विदेश में अहिंसा धर्म का प्रसार किया। प्रजा तो पानी छानकर ही पीती थी... पशुओं को भी छानकर ही पानी पिलाया जाता था। - चौदह हजार नये जिनमंदिर बँधवाये / - सोलह हजार मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया। - स्वयं चातुर्मास में नियमित एकाशन करते थे। - 'मार' वैसा शब्द यदि मुँह में से निकल जाता तो एक उपवास करते थे। - झूठ बोला जाता तो आयंबिल करते थे। - सोने-चांदी की स्याही से आगमग्रन्थ लिखवाये। 'त्रिशिष्टिशलाका पुरुष चरित्र' के 36000 श्लोक लिखवाकर उन ग्रन्थों को हाथी पर रखकर, पाटण में शोभायात्रा निकाली। - 700 आलेखकों के पास गुरुदेव के लिखे हुए ग्रन्थों को लिखवाकर देशपरदेश के ज्ञानभण्डारों में रखे। इतना सब कुछ करने पर भी एक सत्कार्य राजा के ध्यान से बाहर ही रह गया था। गुजरात में लाखों जैन दुःखी और दीन-हीन अवस्था के शिकार थे। उनके दुःखों को मिटाने का विचार राजा कुमारपाल के मन में अभी तक आया नहीं था। गुरूदेव यह कार्य उस ढंग से करना चाहते थे कि कुमारपाल के दिल पर गहरा असर हो। इसके लिए वे कोई उचित अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे। वैसा अवसर आ पहुंचा। गुरुदेव पाटन पधारनेवाले थे। राजा ने गुरुदेव के भव्य स्वागत की तैयारियाँ करवाई थीं। राजमार्गों को ध्वजा-पताका से सजाया गया था। जिन रास्तों पर से स्वागतयात्रा गुजरनेवाली थी... उन रास्तों को स्वच्छ किया गया था। मंदिरों में उत्सव रचाये गये थे। गरीबों को भोजन देने का समुचित प्रबंध किया गया था। स्वागतयात्रा में शामिल होने के लिए कुमारपाल ने अपने अधीनस्थ सैंकड़ो For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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