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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्मश्रद्धा के चमत्कार १२९ ___ संध्या के समय कुमारपाल पूजन सामग्री के साथ रथ में बैठकर बगीचे में गये। जहाँ पर तालवृक्ष थे। वहाँ उस जगह पर पहुँचे। नौकर ने जगह को स्वच्छ किया । आसन बिछाया। उस आसन पर बैठकर राजा ने वृक्षपूजा प्रारंभ की। उस वृक्ष पर चंदन का विलेपन किया। कंकू के छींटें डालें। सुगंधयुक्त फूलों की वृष्टि की। फिर दोनों हाथ जोड़कर एकाग्र मन से वृक्ष देवता की प्रार्थना की : 'हे वृक्ष देवता, यदि मुझे जितना प्रेम-स्नेह मेरे स्वयं पर है... उससे भी विशेष प्रेम... विशेष आदर यदि जैन धर्म पर हो तो ये सभी तालवृक्ष सुन्दर हो जाएँ। साफ सुथरे हो जाएँ।' - इस तरह प्रार्थना करके राजा ने अपने गले का सुवर्णहार निकाल कर तालवृक्ष को पहनाया। राजा रथ में बैठकर राजमहल पर लौट गया। राजा ने पूरी रात धर्मध्यान में व्यतीत की। ० ० ० सबेरे उपवास का पारणा किये बगैर कुमारपाल गुरुदेव के दर्शन-वंदन करने के लिए उपाश्रय पहुंचे। दर्शन-वंदन करके वे उपदेश सुनने के लिए बैठे। अन्य स्त्री-पुरुष भी वहाँ पर उपदेश सुनने के लिए एकत्र हो गये थे। गुरुदेव ने शक्कर सी मीठी जबान में उपदेश का प्रवाह बहाया। इतने में बगीचे के माली ने चेहरे पर अपार प्रसन्नता को छलकाते हुए उपाश्रय में प्रवेश किया। चुपचाप वह भी उपदेश की धारा में बहने लगा। उपदेश पूरा हुआ। माली ने महाराजा को प्रणाम करते हुए निवेदन किया। 'महाराजा, आपके द्वारा की हुई वृक्षपूजा फलवती हुई है। मैंने आज सबेरे ही उन तालवृक्षों को देखा । वृक्ष एकदम निरोगी और सुन्दर हो गये हैं | धन्य है आपकी धर्मश्रद्धा को | मैंने तो ऐसा चमत्कार प्रभु, जिन्दगी में पहली बार ही देखा।' कुमारपाल ने अपने गले की माला निकालकर माली को भेंट दे दी। माली से कहा : For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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