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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२७ धर्मश्रद्धा के चमत्कार यह ज्ञानोपासना का महायज्ञ देखकर कुमारपाल का रोयाँ-रोयाँ पुलक उठता था। उन्होंने इस कार्य की देखभाल के लिए एक निष्ठावान् पुरूष को नियुक्त किया था। वह पुरुष गुरुदेव को जो ग्रन्थ चाहिए वह ग्रन्थ ज्ञानभंडार में से निकाल कर देता था। आलेखकों को कागज देता था... स्याही देता था। आलेखकों के लिए ठहरने की... भोजन वगैरह की सारी व्यवस्था करता था। किसी को तनिक भी तकलीफ न हो इसका खयाल रखता था। गुरुदेव के साहित्य सर्जन में उनके तीन मुख्य शिष्यों का महत्वपूर्ण योगदान रहता था । मुनि रामचन्द्र, मुनि गुणचन्द्र, मुनि महेन्द्र । इनके अलावा अन्य शिष्य प्रशिष्य भी नानाविधरुप से गुरुदेव की सर्जनयात्रा में सहयोगी बनते थे। ० ० ० एक दिन की बात है : महाराजा कुमारपाल दैनंदिन क्रम के मुताबिक सबेरे-सबेरे उपाश्रय में पहुँचे । गुरुदेव को वंदना की...कुशल पृच्छा की । और फिर उपाश्रय में निगाहें डाली... तो चारों ओर खामोशी का वातावरण छाया था। आलेखक कुछ भी लिख नहीं रहे थे। सभी निष्क्रिय बैठे थे। 'गुरुदेव, क्या बात है? आज आपकी वाणी की सरस्वती अवरुद्ध हो गई है? ग्रन्थलेखन का कार्य आज बंद क्यों है? क्या मुसीबत है?' 'राजन्, लिखने के लिए तालपत्र नहीं है।' 'क्या कह रहे है आप? कुमारपाल के राज्य में तालपत्र कम हो गये?' कुमारपाल को धक्का सा लगा। समीप में खड़े व्यवस्थापक से पूछा : 'यह क्या? कागज कम पड़ गये? पर क्यों?' व्यवस्थापक ने कहा : 'महाराजा, कागज कश्मीर से आते हैं... समय पर कागज नहीं पहुँच पाये हैं, और यहाँ पर तो कश्मीर जैसे कागज मिलते नहीं है।' महाराजा मौन रहे। गुरुदेव ने कहा : 'राजन्, चिंता मत कीजिए... एक-दो दिन में कागज आ जाएंगे।' For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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