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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बादशाह का अपहरण १२४ 'भगवन्, यह यवनराजा तनिक भी भरोसा करने के काबिल नहीं है। वचन भंग करने में या विश्वासघात करने में ये लोग जरा भी हिचकते नहीं। उपकारी के उपकारों को भूल जाना... इनका पुश्तैनी पेशा है। इन दुष्टों पर दया करना यानी बंदर को मदिरा पिलाना होगा। __ गुरुदेव बोले : 'हम बादशाह के मन का परिवर्तन करवाएंगे। राजन्, तुम्हें इससे जो भी कबूलात करवानी हो वह करवा लो | मुझे भरोसा है कि यह उन बातों का अवश्य पालन करेगा।' कुमारपाल को गुरुदेव की आज्ञा माने ब्रह्मवाक्य! उसने मुहम्मद से कहा 'बादशाह, यदि तू तेरे देश में साल के छह महीने तक अहिंसा का पालन करने का वचन दे... इन गुरुदेव के पास प्रतिज्ञा लेगा, तो ही मैं तुझे छोडूंगा। मेरा यही जीवन ध्येय है... लक्ष्य है... मैं चाहता हूँ कि संसार में कोई प्राणी कभी किसी की हत्या नहीं करे। मुहम्मद, जीवों की रक्षा करना यही सच्चा धर्म है | यदि तू मेरी बात मानेगा... तो तेरा और तेरे देश की प्रजा का कल्याण होगा। तू यदि अपने मुकाम पर जाना चाहता है... तू यदि रिहाई चाहता है... तो मेरी यह बात तुझे माननी ही होगी। वर्ना तो मेरी जेल की सलाखों के पीछे तुझे जिन्दगी गुजारनी होगी। तेरी जो इच्छा हो... वह बता दे।' __मुहम्मद के लिए और चारा ही कहाँ था? उसने कुमारपाल की बात को स्वीकार किया। ___ अपने से ज्यादा ताकतवर की हर बात माननी ही होती है। वहाँ और कोई बहाना बनाने से कुछ होता नहीं। कुमारपाल ने कहा : 'मुहम्मद, अब तू मेरा अतिथि है... मेहमान है... चल मेरे महल पर | तुझे मैं तीन दिन रोकूँगा... हमारी मेहमान-नवाजी तुझे जिन्दगी पर्यन्त याद रहेगी।' ____ मुहम्मद ने कहा : 'गूर्जरेश्वर, जिन्दगी भर ये गुरुदेव याद रहेंगे! मेरी यह जुर्रअत... मेरी यह गुस्ताखी मुझे हमेशा याद रहेगी। और गूर्जरेश्वर की दया भी हरहमेशा याद रहेगी।' सबेरे कुमारपाल ने मुहम्मद को अपने ही साथ रथ में बिठाया और राजमहल पर ले गये। For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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