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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आकाशमार्ग से भरुच में १०३ भगवान मुनिसुव्रत स्वामी की जिन प्रतिमा को प्रतिष्ठापित किया गया । मंदिर के शिखर पर स्वर्णकलश की स्थापना कर के ... आम्रभट्ट गीतगान और वाजिंत्रों के नाद के साथ नृत्य करने लगे। भावविभोर होकर... वे नाचने लगे । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंदिर के शिखर पर से आम्रभट्ट ने सोने और चाँदी के सिक्के बरसाये... क़ीमती वस्त्रों की बारिश की ... सच्चे मोती और रत्न उछाले । राजा कुमारपाल ने आम्रभट्ट से कहा : ‘अंबड़, अब तू नीचे आ। भगवान मुनिसुव्रतस्वामी की आरती उतारनी है। ' अंबड़ नीचे उतरा। मंदिर के द्वार पर खड़े द्वार रक्षकों को उसने घोड़े भेंट किये। राजा के साथ उसने मंदिर में प्रवेश किया । आरती की तैयारी की गई । पहली आरती राजा कुमारपाल ने स्वयं उतारी । दूसरी आरती आम्रभट्ट और उसकी पत्नी ने उतारी । तीसरी आरती आम्रभट्ट की माता पद्मावती ने उतारी । चौथी आरती आम्रभट्ट की बहनों ने एवं पुत्रों ने उतारी । पाँचवीं आरती उपस्थित पूरे संघ ने उतारी। कुमारपाल के साथ आम्रभट्ट मंदिर से बाहर आये । याचकों की कतारें खड़ी थीं, उनकी प्रतीक्षा करती हुई । आम्रभट्ट ने खुले हाथों दान देना प्रारंभ किया। जब सभी सिक्के पूरे हो गये... तब आम्रभट्ट अपने शरीर पर से अलंकार उतारकर देने लगा। कुमारपाल ने आम्रभट्ट का हाथ पकड़ लिया । आम्रभट्ट ने राजा के सामने देखते हुए पूछा : 'आप मुझे क्यों रोक रहे हो, मेरे नाथ?' राजा ने कहा : जब ये आभूषण पूरे हो जाएंगे... तब तू शायद अपना सिर भी उतार कर दान में दे दे | दानशूर व्यक्ति क्या कुछ नहीं दे देते ? सब कुछ लुटा देते हैं। इसीलिए मैंने तुझे रोका। मुझे तेरी बहुत जरूरत है अंबड़ ।' महाराजा कुमारपाल आम्रभट्ट को 'अंबड़' कहकर बुलाते थे... घर में भी सभी उनको 'अंबड़' कहकर ही पुकारते है । For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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