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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८६ जिंदगी इम्तिहान लेती है महावीर की आत्मा की मृत्यु नहीं हुई है, आत्मा तो सिद्ध-बुद्ध और मुक्त बन कर अनन्त-अनन्त में रम रही है। परन्तु दुनिया उनको देख नहीं सकती! दुनिया उनको सुन नहीं सकती! वर्षों तक महावीर को देखे थे... वर्षों तक महावीर को सुने थे... अब दुनिया कभी भी महावीर को देख नहीं सकेगी... सुन नहीं सकेगी। जो आत्मा विदेह बन जाती है, शरीर के बन्धनों से संपूर्ण मुक्त बन जाती है, वह आत्मा पुनः सदेह नहीं बनती है। सदेह महावीर के दर्शन हमको नहीं होंगे! हाँ, जब हमको केवलज्ञान होगा, केवलज्ञान के पूर्ण प्रकाश में... भूतकालीन पर्याय के रूप में दर्शन होगा! जब हम भी देह के बंधन से मुक्त बनेंगे तब परमात्मा की ज्योति में अपनी ज्योति अभेदभाव से मिल जाएगी। फिर कभी भी वियोग नहीं होगा। २५०० वर्ष पूर्व श्रमण परमात्मा महावीर देव का निर्वाण हो गया। मात्र ७२ वर्ष की आयु में ही वे देहमुक्त हो गए | 'अन्तरायकर्म' के क्षय से अनन्त वीर्य, अनन्त शक्ति का आविर्भाव हो गया था, परंतु वे अपना आयुष्य बढ़ा नहीं सके! चूँकि वे वीतराग थे, इसलिए आयुष्य बढ़ाने की या कम करने की इच्छा उनमें नहीं थी, परन्तु सर्वजीवहिताय भी उन्होंने आयुष्य नहीं बढ़ाया! जब इन्द्र ने प्रभु से प्रार्थना की थी : 'भगवंत, थोड़ा आयुष्य बढ़ा देने की कृपा करें, ताकि 'भस्मराशि' नाम के ग्रह का असर आपके धर्मशासन पर ज़्यादा नहीं रहे ।' परमात्मा ने स्पष्ट कह दिया था : 'इन्द्र, आयुष्य कर्म समाप्त होने पर कोई भी उसे बढ़ा नहीं सकता, मैं भी नहीं बढ़ा सकता।' निर्वाण हो गया भगवंत का। अब कभी भी उनका जन्म नहीं होगा इस संसार में। परमात्मा अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, वीतराग और अनन्तवीर्यसंपन्न तो थे ही, निर्वाण होने पर वे अरूपी हो गए | जन्म-मृत्यु से परे हो गए | अनन्त अव्याबाध सुख पा लिया उन्होंने । उच्च-नीच से पर 'अगुरुलघु' बन गए। ___ प्रिय मुमुक्षु, सर्व दुःखों का अन्त है, निर्वाण में। जब तक निर्वाण नहीं होगा अपना, हम दुःखों से मुक्त नहीं रहेंगे। श्रेष्ठ पुण्यकर्म का उदय होने पर भी कोई न कोई दुःख तो रहेगा ही संसार में। सर्वोत्कृष्ट पुण्यकर्म का भी अन्त ही आएगा। अनादिकालीन यह विषचक्र चलता ही रहा है। तोड़ना होगा इस विषचक्र को। श्रमण परमात्मा महावीर ने २५०० वर्ष पूर्व तोड़ दिया यह विषचक्र... और वे अमृतमय बन गए। उनको पूछा होगा किसी शिष्य ने : 'भगवंत! आप अनन्त शक्ति के मालिक हैं, हमारा भी संसार चक्र तोड़ दो! हमको भी मुक्तिपद दिला दो... इतनी कृपा कर दो...।' For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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