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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है जब तक अपनी आत्मा देह के बंधन से आबद्ध है... तब तक परमात्मा की ज्योति में अपनी आत्मज्योति नहीं मिल सकती! परमात्मा विदेह है... उनमें समा जाने के लिए हमें भी विदेह होना पड़ेगा। ® मुक्ति के लिए प्रत्येक आत्मा को अपना निजी पुरुषार्थ करना होता है। औरों से मार्गदर्शन मिल सकता है... पर प्रयत्न तो स्वयं को ही करना पड़ता है। ® चारों तरफ बंधन ही बंधन है... कुछ बंधन तो प्रिय लगने लग गए हैं। जैसे बंधन, बंधन ही नहीं लगते! बंधनों की दुनिया में मुक्ति-निर्वाण जैसे की विस्मृति के सागर में खो गए हैं! ® अर्थहीन परंपराएँ और शास्त्र विहीन रढ़ियों को तोड़ना ही होगा! पत्र : १९ प्रिय मुमुक्षु, धर्मलाभ, परमात्मा की परम कृपा से यहाँ कुशलता है, प्रसन्नता है। तेरा पत्र मिला है। 'अरिहंत' का उधर अच्छा प्रचार हो रहा है, जानकर प्रसन्नता हुई। हिन्दीभाषी प्रदेशों में जहाँ-जहाँ 'अरिहंत' जाता है, लोग काफी जिज्ञासा से पढ़ते हैं। शुभ प्रयत्न की सफलता के सन्देश सुनने से शुभ प्रयत्नों में उत्साह बढ़ जाता है। वर्षाकाल पूर्ण होने जा रहा है। किधर जाना होगा... कुछ निश्चित नहीं! उत्तर और दक्षिण दोनों का आग्रह है। अभी तो उस विषय का कोई विचार ही नहीं आता है। कल रात परमात्मा महावीर प्रभु के निर्वाण-चिन्तन में व्यतीत हुई। आनंद की अनुभूति हुई। तू जानता है न कि दीपावली का पवित्र दिन परमात्मा का निर्वाण कल्याणक का दिन है? कार्तिक अमावस्या की मध्यरात्रि का समय निर्वाण का समय था। सदेह तीर्थंकर विदेह हो गए उस रात में...। उनके प्रति अन्तरंग प्रीतिवाले हजारों साधु-साध्वी, लाखों श्रावक-श्राविका और करोड़ों अनुयायी.... जिनको-जिनको महावीर के निर्वाण के समाचार मिले थे, घोर उदासी में डूब गए थे। फूट-फूट कर रोए थे। सब जानते थे कि For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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