SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है ८३ इतना ही नहीं, अग्नि की खाई पानी का सरोवर बन गया और सतीत्व सिद्ध हो गया, बाद में जब श्री राम क्षमा माँगने लगे, तो क्षमा भी एक क्षण में दे दी। कुछ भी कहे बिना... सहजता से क्षमा दे दी और संसार त्याग कर चल पड़ी चारित्र पथ पर | पति, देवर, पुत्र वगैरह के प्रति कोई ममत्व नहीं रहा... ममत्व के बंधन भी सहजता से तोड़ दिए! ऐसी सहजता... स्वाभाविकता आ जाए जीवन में, तो काम हो जाए। स्वाभाविक गंभीरता, स्वाभाविक उदारता। कोई कृत्रिमता नहीं... कोई दंभ नहीं, दिखावा नहीं। कोई भय नहीं, जीवन का कोई मोह नहीं। जहर का प्याला भी सहजता से पी जायें... वैसा जीवन जीने का मजा है। तेरे मन में जो अपूर्व पवित्र भाव जागृत हुआ है परमात्म-समर्पण का, उस पवित्र भाव को सुदृढ़ बनाए रखना । उस भाव को प्रबुद्ध करते रहना । वह भाव मंद न हो जाये, नष्ट न हो जाये, उसका पूरा ध्यान रखना। भावों को, सद्भावों को टिकाना और बढ़ाना सरल नहीं हैं। लाखों करोड़ों की संपत्ति को टिकाना सरल है, पवित्र भावों को सुरक्षित रखना मुश्किल है। तुझे जो समर्पण का अपूर्व भाव मिला है, चिन्तामणि रत्न की तरह उसको सुरक्षित रखना। इसके लिए परमात्म-नाम का स्मरण, परमात्म-प्रतिमा का दर्शन-पूजन और परमात्मगुणों का कीर्तन करते रहना। इससे समर्पण भाव को अनुकूल वातावरण मिल जाएगा। शुभ भावों को यदि अनुकूल वातावरण मिल जाए तो शुभ भाव टिकते हैं। विरुद्ध वातावरण में सामान्य मनुष्य शुभ भावों को टिका नहीं सकते। परमात्मसमर्पण की मान्यता का विरोध करने वालों का संपर्क नहीं रखना, अन्यथा कभी भी तेरा समर्पण खंडित हो सकता है। समर्पणभाव को पुष्ट करने हेतु तू परमात्मा की ही बातें करते रहना। परमात्मा की कथाएँ सुनते रहना। तुझे परमात्म विषयक बातें सुनने में बड़ा आनंद आएगा। हाँ, कभी कोई परमात्मा की निन्दा भी करे, उनके प्रति भी द्वेष मत करना। उसके प्रति भी दया भाव रखना । 'बेचारा परमात्मा की निन्दा कर घोर पापकर्म बाँधता है, जब वे कर्म उदय में आएँगे.. कितने दुःख भोगने पड़ेंगे इसको।' निन्दक के साथ उलझना मत। झगड़ना मत । इतनी सावधानियाँ बरतना। तेरा परमात्मसमर्पण का शुभ भाव बढ़ता जाएगा। __ छोटी सी जिन्दगी में... अनिश्चित जिन्दगी में यदि इतनी उपलब्धि भी हो जाये तो जीवन सफल बन जाये... परलोकयात्रा का प्रयाण भी प्रसन्नतापूर्वक For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy