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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८२ जिंदगी इम्तिहान लेती है रखेगा तो सूर्य का प्रकाश तेरे मकान में आएगा और मकान को गर्मी से भर देगा। मकान बंद रखेगा तो सूर्य का प्रकाश प्राप्त नहीं होगा। तूने अपना हृदय परमात्मा के सामने खोल दिया है, तो परमात्मा की अचिन्त्य कृपा तेरे हृदय में बरसेगी ही और वह कृपा काम करेगी। करने देना जो कुछ करना हो उस दिव्य चेतना को! तू तो अनुभूति करते रहना । जो नई-नई परिस्थितियाँ पैदा हो, उसमें से सहजता से गुजरना | परिवर्तन में नई परिस्थितियाँ पैदा होती ही हैं। घबराना मत | यह तेरे लिए अभिनव अनुभव होगा। नए प्रदेश में पैर रखते ही जैसा रोमांच होता है, जैसा अव्यक्त आनंद होता है... वैसा ही रोमांच और आनंद इस अनुभव में होगा। __ परमात्म समर्पण का तत्त्व ही अनूठा है। परमात्मप्रीति और परमात्मभक्ति से भरपूर परमात्मप्रेमी परमात्मा के चरणों में मन-वचन काया से समर्पित हो जाता है। सहनशीलता भी सहज हो जाएगी। सहनशीलता स्वभावभूत बन जाएगी। उसके साथ-साथ गंभीरता और उदारता भी जीवन-सहचरी बन जाएगी। वर्तमान जीवन के सभी कर्तव्यों का पालन करते हुए भी इस प्रकार का जीवन बन जाएगा। जीवन के सभी कर्तव्यों के पालन में तुम्हारी सहज-स्वाभाविक सहनशीलता, गंभीरता और उदारता उद्भासित होगी। सीताजी की सहज सहनशीलता का दर्शन वनवास में होता है, तो उनकी स्वाभाविक गंभीरता अपने पुत्रों के सामने अभिव्यक्त होती है। कभी भी उन्होंने लव-कुश के सामने श्री राम के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं बोला | चूँकि उनके हृदय में श्री राम के प्रति कोई रोष ही नहीं था। जो कुछ भी उनके जीवन में घट रहा था, वह सहजता से स्वीकार करते चली थी। पुत्रों के सामने श्री राम के विरुद्ध बोलने की चंचलता आएगी ही कहाँ से? ___ जब श्री राम ने सीताजी को 'दिव्य' करके अपने सतीत्व की प्रतीति, अयोध्या की प्रजा को करानी चाही, तब भी सीताजी ने स्वीकार कर लिया। स्वाभाविकता से स्वीकार कर लिया था। श्री राम के साथ कोई बहस नहीं, कोई बात नहीं। इतना भी नहीं कहा कि अब क्या सतीत्व की परीक्षा ले रहे हो? जब जंगल में त्याग करवा दिया, धोखा देकर, उस समय परीक्षा लेते तो बुद्धिमत्ता थी...' नहीं, कुछ भी नहीं बोली सीताजी। भड़भड़ आग में कूद पड़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं, कोई भय नहीं, जीवन का कोई मोह नहीं। पूर्ण गंभीरता! For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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