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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७३ जिंदगी इम्तिहान लेती है मानता! जानता भी है तो यह नियम तो साधुपुरुषों के लिए है'- ऐसा सोचकर मजे से विकथा का रस लूटते हैं। फिर जब विकथायें करने वाली 'कम्पनी' नहीं मिलती है तब वह 'नीरस' बन जाता है। बातें करने वाला कोई नहीं मिलता है तब वो ऊब जाता है। इसलिए इस विकथा के व्यसन में मत फँसना । व्यसनों के सहारे रसवृत्ति का पोषण करने वाले अपने आपको दु:खी और अशांत करते हैं। ताश खेलने का रस, सिनेमा देखने का रस... वगैरह बुरे व्यसन हैं। सात्त्विक प्रवृत्ति में रसानुभूति होनी चाहिए | मानो कि निवृत्ति में मजा नहीं आता है तो सत्प्रवृत्ति में मजा लो। क्रियात्मक धर्म का क्षेत्र भी विशाल है। तेरे पास तो गीतरचना की भी प्रवृत्ति है। परमात्मभक्ति के भावपूर्ण गीतों की रचना कर, उन गीतों को परमात्ममंदिर में मधुर कंठ से गाता रहे! खूब मजा आएगा। जब-जब फुरसत मिले, काव्य की दुनिया में चले जाना! आत्मसंवेदन के भी अनेक काव्य तू बना सकता है। तेरे हृदय के भावों को इस प्रकार अभिव्यक्ति कर सकता है। वैसे दूसरी प्रवृत्ति है - अच्छे तात्त्विक आध्यात्मिक ग्रन्थों का अध्ययन करने की । भारतीय दर्शन के हजारों ग्रन्थ हैं। हर विषय के ग्रन्थ हैं। तुझे तो फिलोसोफी में रस है। अध्ययन के बाद रोजाना 'नोट्स' भी लिख सकता है। जब किसी सात्त्विक प्रकृति के विद्वान का संयोग मिले तब उनके पास जाकर विनम्रता से तेरी जिज्ञासाएँ भी संतुष्ट कर सकता है। आगे बढ़कर कुछ मित्रों को एकत्र कर तात्त्विक चर्चा कर सकते हैं। जैसे, नवतत्त्वों में से एक-एक तत्त्व लेकर उस पर चर्चा कर सकते हो। इस चर्चा में एक सावधानी बरतने की होती है : विवाद में नहीं उलझना, विवाद का स्वरूप आ जाये कि चर्चा बन्द कर देना। विवादास्पद बात नोट कर लेना और किसी विद्वान से समाधान पा लेना | इससे मित्रता अखंड रहेगी और मित्रों को तत्त्वरसिक बनाए जाएंगे। तेरा जीवन रसमय बनता जाएगा। ___ जब दीर्घ समय का अवकाश मिले तब तीर्थयात्रा करने निकल जाना। प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर ऐसे कई पवित्र तीर्थधाम हैं, चले जाना उधर और मन को सात्त्विक आनंद से भर देना। आबू-देलवाड़ा, अचलगढ़, राणकपुर, तारंगाजी, नाकोडाजी... इत्यादि तीर्थधाम ऐसे हैं कि वहाँ मन... आत्मा...आनंद से भर जाते हैं। तीर्थयात्रा के विषय में कभी लिखूगा विस्तार से। फिर भी मन नहीं माने तो मेरे पास चले आना । ठीक है न? यहाँ तो तेरा तन-मन प्रफुल्लित हो ही जाता है। जीवन को मिथ्या कल्पित विकल्पों से For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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