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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है ७० ® जिन्दगी कभी भी बोझ न बने... तनाव या खिचाव का शिकार न बने... इस तरह अपने आपको समझा लेना चाहिए। जीवन का रस सूखना नहीं चाहिए... जीवन एकाध पल भी नीरस या शुष्क नहीं हो जाना चाहिए। जीवन का हर एक पल रसानुभूति से सराबोर रहे यह ज़रूरी है! ® किसी भी प्रकार का व्यसन नहीं चाहिए। व्यसनों की गुलामी में फंस कर आदमी अपने आपको दुःखी एवं अशांत बना डालते हैं! ® किसी के भी साथ बातचीत करते समय वादविवाद में नहीं उलझना चाहिए! संवाद में मजा है... इसके लिए अपनी ही बात का आग्रह खतरा बन जाता है। पत्र : १६ प्रिय मुमुक्षु, धर्मलाभ, वहाँ पहुँचने के पश्चात तेरा लिखा हुआ पत्र मिला | मेरा स्वास्थ्य अच्छा है, विहारयात्रा निराबाध रही है। तू मेरे पास आया और चला गया... तेरी उद्विग्न आत्मा प्रशांत बनी, तेरा संतप्त मन शीतल बना, बस, मैं यही चाहता हूँ। जीवन बोझिल नहीं बनना चाहिए, भाररूप नहीं बनना चाहिए | कोई तनाव नहीं! कोई तीव्रता नहीं! तेरे जाने के बाद एक साधक पुरुष मिले। करीबन २० वर्ष से उन्होंने संसार त्याग कर, त्यागमय जीवन जीना प्रारम्भ किया। वे त्यागी हैं, वे वैरागी भी हैं, वे तपस्वी भी हैं...परन्तु जब उनसे मेरी बात हुई...रात के दो बजे तक हम बातें करते रहे, उनका हृदय भारी-भारी था! उनका मन संतप्त था! उनको अनेक शिकायतें थीं, उनकी अपनी कई आकांक्षाएँ थी, जो, अपूर्ण थी'...इससे वे बेहद अशांत थे! जीवन... त्यागमय जीवन भी उनको भार रूप बन गया था! मुझे लगा कि वे जीवन को घसीट रहे थे... उनका जीवन स्वाभाविक नहीं था, अस्वाभाविकता को वे बनाए रखना चाहते थे। उनके पास रटे हुए कुछ ग्रन्थों का ज्ञान था परन्तु अनुप्रेक्षा से आत्मसात किया हुआ ज्ञान नहीं था। वे मानते थे कि उनके पास सम्यग्दर्शन है परन्तु वे किसी को भी For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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