SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जिंदगी इम्तिहान लेती है ६९ राजा गुणसेन जागृत था, उसको खयाल था कि अग्निशर्मा उसके प्रति घोर द्वेष धारण किए बैठा है, फिर भी गुणसेन ने उसके प्रति द्वेष नहीं किया । इससे गुणसेन आत्मविकास करते रहे और नौवें भव में सर्वज्ञ - वीतराग बन गए! भवसागर को तैर गए । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रिय मुमुक्षु, तेरी वर्तमान परिस्थिति में इतनी जागृति होना अति आवश्यक है। तेरी सहनशीलता निर्वैरभाव से ज़्यादा दृढ़ - निश्चल बनेगी । तेरी मानसिक दुनिया सुखपूर्ण बनेगी। मेरे इस पत्र का अर्थ यह मत समझना कि मैं तुझे अपने पास रखना नहीं चाहता। मैं तो चाहता हूँ कि तू मेरे पास ही रहे। मेरे पास रहने से मुझे बहुत प्रसन्नता रहेगी, और जब परमात्मा का अचिन्त्य अनुग्रह होगा तब तू मेरे पास आ ही जाएगा ! तुझे कोई नहीं रोक सकेगा । तू जब चाहे तब मेरे पास आ सकता है । मेरे हृदय के द्वार तेरे लिए खुले ही हैं। २४-४-७७, झगडीया तीर्थ तेरे पास समय है, तू समय का सदुपयोग कर। कुछ तत्त्वज्ञान की पुस्तक पढ़ ले। कुछ लिखना भी चालू कर । तू 'ग्रेज्युएट' है, अच्छा लिख सकता है। तेरे विचारों को लिख कर मेरे पास भेजता रहे । उस व्यक्ति के विचार ही नहीं आएँगे तेरे मन में। अच्छा, तू तो गीत भी लिखता है न? परमात्मभक्ति के कितने अच्छे गीत लिखे हैं तू ने ? मेरे पास भेजना वे गीत, मैं भी गाऊँगा उन गीतों को। तेरा बनाया हुआ गीत मैंने एक भाई के कंठ से सुना है ! बहुत प्यारा लगा था वह गीत । तेरी प्रसन्नता बनी रहे, यही मेरी हार्दिक कामना । For Private And Personal Use Only - प्रियदर्शन
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy