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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है ५६ दृष्टि बनी रहनी चाहिए । मित्रता क्या है ? स्नेह ! प्रेम ! एक ज्ञानी पुरुष ने मित्रता की परिभाषा इस प्रकार की है : स्नेहपरिणामो मैत्री | शत्रुता नहीं होना, इतना ही पर्याप्त नहीं है, स्नेह होना अनिवार्य है । सभी जीवों के प्रति स्नेह! हम एक जीव से शत्रुता नहीं करते हैं, ठीक है, परंतु स्नेह नहीं करते, यह अपराध है ! यह स्नेह व्यावहारिक नहीं होगा, हार्दिक होगा । विशुद्ध हृदय का प्रेम होगा । विशुद्ध हृदय के प्रेम के पात्र सब जीव होंगे। स्वर्ग और नर्क में रहे हुए, निगोद में रहे हुए, अव्यवहार राशि में रहे हुए ... तिर्यंचगति और मनुष्यगति में रहे हुए सब जीव ! इस विषय में मैं आगे लिखूँगा । विशुद्ध प्रेम का आधार है, विशुद्ध हृदय । हृदय को विशुद्ध करने का अमोघ उपाय है, मैत्री आदि चार भावनाओं का सतत स्मरण। आज इस पत्र में इतना ही लिखता हूँ । हम अगाशी तीर्थ में आए हैं । परमात्मा मुनिसुव्रतस्वामी की श्याम प्रतिमा मन को मोह लेती है। उद्यानों का ही यह गाँव है। शांति है, स्वस्थता है । उपधान तप की ४७ दिन की धर्मआराधना हो रही है। कड़ी तपश्चर्या है उपधान की। छोटे बच्चे भी हैं, युवा हैं और वृद्ध भी हैं। दो महीने बीत जाएँगे यहाँ पर । तेरा स्वास्थ्य अच्छा होगा । चिंताएँ नहीं करना । चिंतन करना । मन की निरोगिता की दवाई है, तत्त्वचिंतन ! फालतू विचारों से मन को अशक्त और रोगी नहीं बनाना चाहिए । प्रसन्नता बनी रहे - यही शुभ कामना । For Private And Personal Use Only - प्रियदर्शन
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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