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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४ जिंदगी इम्तिहान लेती है की भावना से दूसरों के प्रेम की अपेक्षा करना- अशुद्ध प्रेम है। दूसरों को दोष और दुःखों से बचाने की भावना से प्रेम करना शुद्ध प्रेम है। स्वार्थ की भावना अशुद्ध हृदय है। परमार्थ की भावना शुद्ध हृदय है। प्रेम की बातें करने वालों को देखना । अपने दोषों को, अपनी भूलों को जो सहन कर ले, दुनिया के सामने प्रगट न करे, अपने दुःखों को जो दूर करे अथवा सहानुभूति प्रगट करे... इसलिए ज़्यादातर लोग प्रेम चाहते हैं! ___ एक युवा मेरे पास आया। उसने कहा : 'मेरी माता का मेरे ऊपर बहुत प्रेम है।' मैंने पूछा : 'माँ क्या करती है?' उसने कहा : 'मेरी माता, मैं कितना भी खर्च कर दूँ, मुझे कुछ कहती नहीं है। मैं रात को कितने भी बजे घर पर जाता हूँ, माता मुझे पूछती नहीं है कि 'तू क्यों इतनी देरी से आया... कहाँ गया था....' कुछ भी पूछती नहीं है। मेरी कोई गलती हो जाये, माँ देख भी ले, पिताजी को कहती नहीं है। ____माँ का ऐसा प्रेम चाहता है पुत्र! व्यावहारिक प्रेम! तुम्हारे हृदय में कुछ भी हो, स्नेह हो या शत्रुता हो, तुम व्यवहार अच्छा करते हो, हो गया प्रेम! और, तुम्हारे हृदय में वास्तविक प्रेम हो, परंतु यदि उसके साथ उसका मनचाहा व्यवहार नहीं किया, तो वह मान लेगा 'मेरे प्रति प्रेम नहीं है!' जो मनुष्य बुद्धिमान नहीं है, जो स्थिरचित्त नहीं है, जो ज्ञानी नहीं हैं, ऐसा मनुष्य व्यावहारिक प्रेम को ही प्रेम मानता है। वह वास्तविक प्रेम नहीं होता है। कार्यसाधक दृष्टि से किया गया प्रेम, प्रेम का आभासमात्र होता है। एक लड़के ने कहा : 'मेरे पिताजी का मेरे प्रति प्रेम नहीं है। वे मुझे पैसा नहीं देते। वे मेरी बुराई करते हैं।' ऐसे उसने कई कारण बताए। यदि उस लड़के को पिता खूब पैसा देता और उसकी प्रशंसा करता होता तो लड़का कहता कि 'मेरे पिता का मेरे प्रति खूब प्रेम है!' एक लड़का ऐसा है कि जिसको मैं जानता हूँ, वह अपने घरवालों से नफरत करता है। वह कहता है कि 'मेरे माता-पिता, भाई-बहन... भाभी... किसी का मेरे प्रति प्रेम नहीं। सब मेरे दोष देखते हैं, मेरी गलतियाँ बताते हैं...' इत्यादि बातें बताई। युवा होते हुए ये भाईसाहब कोई काम नहीं करते, कोई पढ़ाई नहीं करते। सुखी-संपन्न परिवार है इसलिए दूसरी तकलीफें उसको हैं नहीं। उनको वे लोग अच्छे और प्रेमी लगते हैं, जो उससे मीठी-मीठी बातें करते हैं! जो उसको प्रिय शब्दों से भरे पत्र लिखते हैं। जिन लोगों का इसके जीवननिर्माण में कोई योगदान नहीं है, वे लोग इसको प्रिय लगते हैं। मैं इस लड़के के माता-पिता को जानता हूँ। For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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