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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५ जिंदगी इम्तिहान लेती है प्रतिकूल घटना बनती है, अप्रिय प्रसंग बनता है, तब मन अस्वस्थ हो ही जाता है। मन में अशांति उभर आती है।' सच है तेरा कहना। ऐसी परिस्थिति में से मैं भी गुजरा हूँ। जीवन में ऐसा भी समय आया था, जब प्रतिकूलताओं ने चारों ओर से मुझे घेर लिया था... मन अस्वस्थ हो गया था, अशांत हो गया था। कई दिनों तक, कई महीनों तक मन उदासीनता में डूबा रहा था । मन अप्रिय से मुक्त होने को तड़प रहा था। प्रिय से मिलने को तत्पर हो रहा था, परन्तु कुछ तकदीर ही ऐसी थी... एकदो वर्ष बीत गए थे ऐसी उद्विग्नता में। असहाय सा... अशरण सा निराश भटक रहा था, गाँव-नगरों में! परन्तु मेरे मन में एक दिन एक दिव्य विचार उभर आया था... याद है मुझे वह दिन... वह रात... मैं कितना प्रफुल्लित हो गया था उस समय! मैंने कितना अपूर्व आनंद अनुभव किया था! वह दिव्य विचार था, परमात्मा की शरणागति का | उस दिन ही मुझे परमात्मा की ओर वास्तविक स्नेह हुआ था। यों तो बचपन से ही मन्दिर में जाया करता था... दर्शन-पूजन-स्तवन इत्यादि करता ही था । परन्तु परमात्मा की स्मृति... स्नेहपूर्ण स्मृति कभी भी नहीं हो आई थी। उस रात में.... जो कि मेरी व्यथापूर्ण रात थी, परमात्मा की स्मृति हो आई, व्यथा दूर चली गई और प्रसन्नता से हृदय भर गया। 'अरिहंते सरणं पवज्जामि.... अरिहंते-सरणं पवज्जामि... कब तक यह नाद चलता रहा था... पता नहीं, परन्तु उस रात के बाद मेरा मन स्वस्थ बन गया। शांत बन गया, प्रसन्न हो गया। तब से परमात्मदर्शन में, परमात्मा की स्तवना में मुझे अधिक आनंद प्राप्त होने लगा। अप्रिय का संयोग था, फिर भी अखरता नहीं था! प्रिय का वियोग था, फिर भी उद्विग्नता नहीं थी। एक दिन ऐसा आया कि अप्रिय दूर हो गया, प्रिय मिल गया | परमात्मशरण में जाने के पश्चात संकल्प की सिद्धि स्वतः हो जाती है। अपना कर्तव्य होता है, परमात्मा की शरण में रहने का और परमात्मा के प्रति समर्पण भाव बढ़ाने का | चाहे मन शांत हो या अशांत, स्वस्थ हो या अस्वस्थ, दिन में तीन बार तो शरणागति स्वीकार करने की ही। जब मन अशांत हो तब तो पुनः पुनः परमात्मा की भावपूर्ण अन्तःकरण से शरणागति स्वीकार करता हूँ। बाह्य जगत से मन का सम्बन्ध टूट जाता है, तब मन में शांति और स्वस्थता की स्थापना होती है। मेरा यह अनुभव है। तू भी यह प्रयोग करेगा? श्रद्धा, शरणागति और समर्पण-परमात्मा के प्रति ये तीन बातें आ जाए For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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