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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है के श्मशान में तू प्रियतमा के प्यार का महल बनाना चाहता है? उस महल में क्या तू सुख पाएगा? आनंद पाएगा? क्या तेरी माता ने तेरे सुख की प्रतिपल चिन्ता नहीं की है? तेरी हर सुविधा का ख्याल नहीं किया है? प्रेम की निशानी और क्या होती है? तू तेरी माता को विनय से, भक्ति से... प्रेम से तेरे विचारों में सहमत बना ले अथवा तू उनके विचारों का स्वीकार कर ले। अच्छा, मान ले कि तूने उसके साथ (तेरी मनपसंद व्यक्ति से) शादी कर ली, क्या उसके साथ कभी भी वैचारिक मतभेद पैदा ही नहीं होंगे? उस समय तू उसका भी त्याग कर देगा क्या? उसके विचारों से असहमत रह कर जीवन व्यतीत करेगा? बोल, तू क्या करेगा उस समय? प्रिय मुमुक्षु! जीवन की वास्तविकता को मुक्त मन से स्वीकार कर लेना चाहिए | मुख पर मुस्कराहट और आँखों में स्नेह के साथ दूसरों के विचारों का स्वागत करो - जिनके साथ प्रेम करना है, जिनके साथ जीवन व्यतीत करना है, श्रद्धापात्र, भक्तिपात्र और प्रेमपात्र व्यक्तियों के साथ कभी भी वाद-विवाद मत करो। हालाँकि वहाँ वाद-विवाद हो ही नहीं सकता, यदि होता हो तो वह व्यक्ति श्रद्धापात्र, भक्तिपात्र या प्रेमपात्र नहीं रहेगा। ___ माता का प्रेम एक असाधारण वस्तु है, उसका मूल्यांकन करना आवश्यक है। मैं जानता हूँ तेरी करुणामूर्ति माता को। कोई प्रशांत रात्रि में... जब सारा संसार निद्रामग्न हो, चारों और नीरवता हो, तब तेरी उस माता के स्नेहसिक्त नयनों को कल्पना की दृष्टि से जरा देखना। इतनी भावात्मक भूमिका बनाकर, बौद्धिक भूमिका पर, इस विषय में कुछ बातें करूँगा। पत्र में कितना लिखू? लिखते-लिखते कभी थक भी जाता हूँ... तब अनन्त आकाश की तरफ देख लेता हूँ... आँखें बंद हो जाती हैं... अनन्त संसारयात्रा के विचारों में डूब जाता हूँ.... परन्तु आकाश में बिजली चमकती है और पत्र आगे बढ़ता है... पत्र कुछ लम्बा तो हो ही गया है... तुम को पसन्द आएगा न? पसन्द नहीं आए तो लिख देना, मैं बुरा नहीं मानूँगा | क्या बताऊँ? लंबे पत्र लिखने का मैं आदी नहीं हूँ... फिर भी तुम्हे जब लिखने बैठता हूँ... लिखता ही रहता हूँ...। यह भी तेरे प्रति मेरे प्रेम की ही प्रेरणा का परिणाम होगा! १. क्या तेरे माता-पिता को तेरे से कोई स्वार्थ है? यदि स्वार्थ होता तो वे तुझे त्याग के मार्ग पर जाने के लिए प्रेरणा नहीं करते । अर्थात वे निःस्वार्थ हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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