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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है प्रेम मिलना चाहिए.. और मिल रहा है...' परिवार के साथ वैचारिक मतभेद की भी यही जड़ है न? सच्ची बात तो यह है कि जहाँ से मनुष्य प्रेम चाहता है, वहाँ कोई भी वैचारिक या व्यावहारिक मतभेद टिक ही नहीं सकता। क्या तू माता-पिता और भाई-बहन को इसलिए ठुकराना चाहता है कि वे तेरे आध्यात्मिक विकास में विघ्नभूत बनते हैं? तेरी धार्मिक भावनाओं को वे कुचलते हैं? नहीं न? मैं जानता हूँ तेरे परिवार को। वह परिवार कभी भी धार्मिक या आध्यात्मिक विकास में रोड़ा बन ही नहीं सकता। शायद तेरी माता तो यह चाहती होगी कि तू मोक्षमार्ग का पथिक बने। ___ मैं यह अनुमान करता हूँ कि तू तेरे आत्महित को नहीं समझते हुए कोई अहितकारी प्रवृत्ति करता होगा, तुझे वह प्रवृत्ति हितकारी-सुखकारी लगती होगी... तेरे पिताजी और माताजी को वह प्रवृत्ति अहितकर लगती होगी... और वे ऐसी प्रवृत्ति का त्याग करने के लिए कहते होंगे... सही बात है न? उनकी बात सुनना भी तुझे अब पसन्द नहीं लगता, सही बात है-यौवनकाल ही ऐसा है...। तू तेरे माता-पिता की दृष्टि को समझने का प्रयत्न करेगा? वे तेरे लिए जो कुछ सोच रहे हैं - क्या तुझे दुःखी करने का उनका इरादा है? नहीं, तू जो कदम उठाना चाहता है, उसमें वे तेरे को दुःखी देख रहे हैं, वे नहीं चाहते कि तू दुःखी बने। उनके हृदय में तेरे प्रति स्नेह है, स्नेह कभी दुःखी करने का सोच ही नहीं सकता। तेरी माता के पास तो ज्ञानदृष्टि भी है। वह तो तेरे वर्तमान जीवन का ही नहीं, तेरी आत्मा का भी विचार करती होंगी। तू उनकी विचारधारा को शांत चित्त से सोचना अपने सुख और कल्याण की कामना करने वालों के प्रति घृणा कभी नहीं करना। हो सकता है, उनके सब विचार हमको पसंद न भी हो। जब वह व्यक्ति... जिसे तूने प्रेम किया हो, वह तिरस्कार करने लगता है तब? वह ठुकराने लगता है तब? दिल के टुकड़े हो जाते हैं न? जिस दिन तेरा जन्म हुआ था, तेरी ममतामयी माता ने तुझ से प्यार किया था.... आज दिन तक वह प्यार करती आ रही है... हाँ, तू भी उससे प्यार करता था, उसके बिना एक क्षण भी अकेला नहीं रह सकता था... याद कर उन दिनों को। आज तू एक अनजान व्यक्ति के प्यार में बह कर, उस निर्मल प्यार देने वाली माता को ठुकरा रहा है... क्या होता होगा उस मातृहृदय को? मातृहृदय For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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