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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है १५६ ® संसार में सभी सवालों के जवाब नहीं मिलते! कुछ सवाल हमेशा-हमेशा के लिये बेजवाब रहते हैं। ®मोक्ष में जानेवाले जीवों को 'भव्य' कहा जाता है... जबकि जो जीव कभी भी मोक्ष में नहीं जाएँगे उन्हें 'अभव्य' कहते हैं! कोई 'अभव्य' क्यों? इसका कोई समाधान नहीं मिलता! ® अभव्य आत्मा की कभी भी मुक्ति नहीं होगी! किस गुनाह की इतनी बड़ी सज़ा? कोई गुनाह नहीं... कोई सज़ा नहीं, यह तो संसार की एक वास्तविकता मात्र है। B आत्मनिरीक्षण के बिना अध्यात्म के रास्ते पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा जा सकता! ® शांत मन से अपने भीतर को देखो! अपने विचारों को, अपने व्यवहारों को जांचो। और इस तरह स्वयं का निरीक्षण करते रहो। पत्र : ३६ प्रिय मुमुक्षु! धर्मलाभ, तेरा पत्र नहीं मिल रहा है। अच्छा है, इन दिनों में मैं अत्यन्त व्यस्त हूँ, तेरे पत्रों का ठीक समय पर प्रत्युत्तर नहीं दे पाता। पालनपुर से यहाँ तक की पदयात्रा में कुछ अन्तःस्पर्शी विचारस्पंदनों की सुखद अनुभूति हुई। ये सारे विचार बाह्य अनुकूल-प्रतिकूल संयोगों पर आधारित नहीं है, बाह्य क्षणिक एवं परिवर्तनशील परिस्थितियों के सन्दर्भ में भी नहीं है। यह विचारधारा प्रवाहित हुई है, मेरे ही अन्तःस्तल पर! मेरी ही मानसिक भूमि पर! विचारयात्रा का प्रारम्भ हुआ 'अभव्य' जीवों से! तीर्थंकर भगवंतों ने दो प्रकार के जीव बताये हैं : भव्य और अभव्य । जो जीव कभी न कभी मुक्ति पायेंगे, वे जीव भव्य कहलाते हैं और जो जीव कभी भी मुक्ति नहीं पायेंगे, वे जीव अभव्य कहलाते हैं। दोनों प्रकार के जीव अनन्त-अनन्त हैं! भव्य जीव अनन्त हैं, वैसे अभव्य जीव भी अनन्त हैं! For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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