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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३७ जिंदगी इम्तिहान लेती है ___ कभी कोई स्नेही, उसका स्वार्थ सिद्ध नहीं होने से, उसकी कोई मनोकामना पूर्ण नहीं होने से, मेरा त्याग कर चला भी गया होगा, तो भी मैंने, उस व्यक्ति से प्राप्त स्नेह को गटर में नहीं बहा दिया है, मैंने मेरे हृदय में उस स्नेह को सुरक्षित रखा है। कभी किसी को मेरी ओर से नैतिक-धार्मिक या आध्यात्मिक मार्गदर्शन नहीं मिला, जो मार्गदर्शन उसको अपेक्षित था, वह मुझे छोड़ कर चला गया होगा, तो भी मैंने उस व्यक्ति से प्राप्त स्नेह को मेरे हृदय में संगृहीत कर दिया है। इससे मुझे एक बहुत बड़ा फायदा हुआ है। मेरा हृदय अद्वेषी बना रहता है। मेरे एक समय के जो मित्र थे, आज वे भले मुझे मित्र नहीं मानते हैं, उनके प्रति भी मेरे हृदय में द्वेष नहीं है। चूंकि उनका स्नेह जो मुझे पहले मिला था, मेरे हृदय में जमा है। सुरक्षित है। वह प्रेम... वह स्नेह मुझे उनके प्रति द्वेषी नहीं बनने देता है। यह बात मैं तेरे सामने इसलिए स्पष्ट कर रहा हूँ, जिससे तू मेरी ओर से आश्वस्त हो जाए। आज दिन तक तेरी ओर से मुझे जो स्नेह मिला है, वह स्नेह मेरे हृदय में जमा रहने वाला है। तू चाहें तब आकर वह स्नेह पा सकता है। तेरा स्नेह है, तू कभी भी ले सकता है। जी चाहे तब चले आना। __ तू मुझे वहाँ बुला रहा है... परंतु वहाँ आना अभी संभव नहीं है, चूंकि मन ही नहीं मान रहा है। सच कहूँ तो मेरे मन को वहाँ की जिंदगी ही पसन्द नहीं है। वहाँ की दुनिया है, रूप और रुपये की! वहाँ की दुनिया में है, मात्र कृत्रिमता। मनुष्य का स्नेह भी कृत्रिम हो गया है। मानवता के मृत कलेवरों पर सज्जनता शृंगार सजाकर बैठी है। क्या है वहाँ? हाँ, वहाँ प्रसिद्धि मिल सकती है, यश मिल सकता है... और रुपये भी ढेर सारे मिल सकते हैं | रूप और रुपये की तो वह नगरी है। ___ धर्म प्रचार और धर्म प्रभावना की तेरी बात कुछ अंशों में सत्य है, परंतु वह काम तो मैं जहाँ-जहाँ जाता हूँ, वहाँ-वहाँ होता ही रहता है। दूसरी बात, मैं आत्मशांति को विशेष महत्व देता हूँ। नैसर्गिक जीवन मुझे ज़्यादा प्यारा है। वैसा जीवन और वैसी आत्मशांति वहाँ संभव है क्या? मेरा भी अनुभव है ना वहाँ के जीवन का? अभी-अभी हम जिन-जिन शहरों में से और गाँवों में से गुजर रहे हैं... कुछ नए-नए सुखद अनुभव हो रहे हैं। यहाँ की जनता में... अपने जैन संघ के स्त्री-पुरुषों में श्रद्धा, स्नेह और सद्भाव के सुंदर दीपक जलते दिखाई दे रहे For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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