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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९९ जिंदगी इम्तिहान लेती है ___ कुछ वैज्ञानिकों ने तो ऐसे व्यवधान खड़े किए कि रेडियो-तरंगें भी प्रवेश न कर सके, तब भी टेड सेरियम ने मानसिक कल्पना के चित्र उतार दिए! उनकी शैली ध्यान की है। किसी वस्तु का वह तन्मयता तथा प्रगाढ़ एकाग्रता से ध्यान करता है, उस स्थिति में कैमरे को उनकी आँखों में 'फोकस' कर चित्र लिया जाता है, तो फोटो उनके चेहरे या आँखों का न आकर, उसी वस्तु का आता है, वह जिसका ध्यान करता है! वैज्ञानिक मान गए हैं कि टेड की ईमानदारी संदिग्धता से परे है। यह बात नहीं समझ पाए हैं कि यह कैसे होता है! आध्यात्मिक चेतना की जाँच भौतिक विज्ञानशास्त्री कैसे कर पाएँगे? । ___ 'टेड सेरियम' जैसी तन्मयता और प्रगाढ़ता अपने ध्यान में आ जाये तो!! परमात्मतत्त्व की दिव्य अनुभूतियाँ हुए बिना न रहें। अपने धर्मग्रन्थों में जहाँ 'ध्यान' की चर्चा की गई है, लिखा है कि जिस समय मनुष्य समग्रता से जिस वस्तु का ध्यान करता है, उस समय वह उस वस्तु जैसा बन जाता है। भाव-ध्यान में ध्येय के साथ ध्याता का अभेद हो जाता है। ध्याता ध्येय रूप बन जाता है! ध्यान में जितनी प्रगाढ़ता उतना तादात्म्य प्रबल होता है। आज वैज्ञानिक तौर पर यह बात सही सिद्ध हो गई है। सही सिद्ध होने से हमको क्या लाभ? उस दिशा में हम पूर्ण लगन से आगे बढ़े और सहानुभूति करने लगें, तो लाभ है। तेरे लिए चेतना के ऊर्चीकरण का मार्ग सरल बन सकता है। परमात्मप्रीति और परमात्मभक्ति के क्षेत्र में तेरा प्रवेश हो गया है। अब परमात्मध्यान की दिव्य सृष्टि में प्रवेश पाने का भरसक प्रयत्न शुरू कर दे। तेरा हृदय इतना कोमल है, सरल है, भावुक है कि तू इस दिशा में प्रगति कर सकता है। परमात्मसमर्पण का मार्ग जितना बुद्धिमानों का नहीं है, उतना भावनाशीलों का है। जितना तर्क-वितर्क का नहीं है, उतना श्रद्धा का है। जितना वाणी का नहीं है, उतना हृदय का है। बस, इस मार्ग में एक ही भयस्थान है, संसार की माया-ममता और मृगजल का! संसार की सर्वथा भ्रान्त माया-ममता की छलना में यदि मन उलझ गया, भ्रान्ति को वास्तविकता मान लेने की भूल हो गई, तो मार्गभ्रष्ट होने में देरी नहीं होगी। भ्रान्ति में विसंवाद हो या संवाद हो, इससे क्या? भ्रान्ति में सुन्दरता हो या कुरूपता हो, तो भी क्या? भ्रान्ति में अनुकूलता क्या और प्रतिकूलता क्या? For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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