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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-८१ ९१ भविष्य का भी विचार करता है । वह तो यह विचार करेगा कि 'पुण्य के उदय से मुझे इतना सारा धन मिला है तो मैं इसका सदुपयोग करूँ | परमात्मभक्ति में धन का व्यय करूँ | साधु-सेवा में संपत्ति का सदुपयोग करूँ | दुःखी जीवों के उद्धार में पैसा खर्च करूँ । सम्यकज्ञान के प्रचार-प्रसार में धन का उपयोग करूँ।' उनके आदर्श होते हैं सम्राट संप्रति-और राजा कुमारपाल जैसे महानुभाव | उनके आदर्श होते हैं विमलशाह मन्त्री, वस्तुपाल-तेजपाल और जगडूशाह एवं भामाशाह जैसे श्रेष्ठि! इन महापुरुषों के जीवन-चरित्र बोलते हैं कि उन्होंने तीनों पुरुषार्थ का यथोचित पालन किया था, विपुल संपत्ति का सद्व्यय किया था। हालाँकि वे भी अपने वैभव के अनुरूप जीते थे, फिर भी वे संपत्ति का अपव्यय नहीं करते थे। धन का संग्रह नहीं करते थे और धर्मपुरुषार्थ का त्याग नहीं करते थे। कौन है आदर्श? : ऐसे महापुरुषों के आदर्श आप रखते हैं क्या? कौन हैं आपके आदर्श? आप नहीं बोलेंगे, परन्तु मैं जानता हूँ। आप वर्तमान काल के बड़े-बड़े वैभवशाली श्रीमन्तों को देखते हो। उन लोगों का रहन-सहन और जीवन देखते हो। वह भी ऊपर-ऊपर से देखते हो! भीतर में जाकर देखो तो कुछ अच्छी बातें भी जानने को मिल सकती हैं। भारत का एक उद्योगपति हवाई जहाज में सफर कर रहा था। उसके पास ही एक प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता बैठा था। वह उद्योगपति अपनी फाइलें देखने में व्यस्त था। उसने पास में बैठे अभिनेता के सामने भी नहीं देखा! अभिनेता को आश्चर्य हुआ, कुछ स्वमानहानि जैसा भी लगा होगा! 'मैं इतना प्रसिद्ध अभिनेता पास में बैठा हूँ फिर भी यह व्यक्ति मेरे सामने भी नहीं देखता है...शायद वे मेरा नाम नहीं जानते होंगे?' अभिनेता ने उस उद्योगपति से कहा : मेरा नाम...है।' उद्योगपति ने उसके सामने देखा और कहा : 'अच्छा...मेरा नाम...है।' 'क्या आपने मेरी फिल्में नहीं देखी हैं?' 'जी नहीं, मुझे समय का अपव्यय करना पसंद नहीं है! मुझे अपने कार्यों से फुरसत ही नहीं मिलती है।' अभिनेता चुप हो गया । उद्योगपति समय का अपव्यय करता नहीं था और धन का सद्व्यय करता था। कहीं पर भी मंदिर बनता हो...और मंदिर बनानेवाले यदि इस उद्योगपति के पास जाकर सिमेंट मांगते तो वे अपनी For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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