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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९० प्रवचन-८१ कदर्य : जो मनुष्य स्वयं कष्ट सहन करके एवं सेवकों को भी कष्ट देकर धन संचित करता है, इकट्ठा करता है...परन्तु खर्च नहीं करता है, उसको कदर्य कहते हैं। ऐसे मनुष्यों का धन, कभी भी कामपुरुषार्थ में या धर्मपुरुषार्थ में काम नहीं आता है। न वह सुख-भोग कर सकता है, न त्याग कर सकता है। इसका धन या तो सरकार ले जाती है, या तो साझेदार ले जाता है, या फिर डाकू ले जाते हैं। आज के लोग : कुछ वर्षों से आप देख रहे हैं कि जो बड़े-बड़े श्रीमन्त हैं, जो विपुल धनराशि का संग्रह करते हैं, उनके वहाँ सरकार के छापे पड़ रहे हैं। पैसे तो वे लोग ले ही जा रहे हैं, सजा भी करते हैं। जंगल के डाकुओं से भी ये डाकू ज्यादा खतरनाक हैं न? फिर भी धनसंग्रह की आप लोगों की लालसा कम नहीं हो रही है न? चूँकि आप गंभीरता से सोचते ही नहीं हो। 'कदर्य' प्रकार के लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। 'तादात्विक' प्रकार के भी बहुत श्रीमन्त दिखाई देते हैं। धन का अपव्यय भी काफी बढ़ रहा है। जिनके पास अनापसनाप धन आता है वे लोग धन का अपव्यय भी बहुत करते हैं। मध्यमकोटि के श्रीमन्त भी धन का अपव्यय करने लगे हैं। ० बिना प्रयोजन मात्र घूमने के लिए, मौज-मजा करने के लिए विदेशयात्रा करते रहते हैं। ० परिवार के साथ, मित्रों के साथ होटलों में जाकर भोजन करते हैं...बड़ी-बड़ी होटलों में जानेवाले बड़े श्रीमन्त कहलाते हैं...इसमें ही अपना गौरव अनुभव करते हैं। ० नये-नये फैशन के मूल्यवान् वस्त्र बनवाते रहते हैं, उसमें हजारों रुपये खर्च कर देते हैं। ० घर में लाखों रुपयों का फर्निचर बनवाते हैं, यान्त्रिक साधन बसाते हैं। ये तो मैंने दो-चार उदाहरण दिये हैं। इसके अलावा भी अनेक प्रकार के फालतू खर्च करते रहते हैं। ऐसे लोग तब दुःखी हो जाते हैं जब उनका धन चला जाता है। लक्ष्मी यूँ भी चंचल तो है ही! किसी के पास कायम रहती नहीं है। सभा में से : जब तक धन पास में हो तब तक तो आनन्द-प्रमोद कर लें न? मात्र वर्तमान नहीं, भविष्य भी है! : महाराजश्री : बुद्धिमान् मनुष्य मात्र वर्तमान का विचार नहीं करता है, For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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