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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-७७ __ ४५ कामनावालों की साधुसेवा ही सच्ची साधुसेवा है । भौतिक ऋद्धि-सिद्धियाँ पाने की भावना से, दुःख-दर्दो से छुटकारा पाने के लिए ही जो साधु-पुरुषों के पास आते-जाते हैं, उन लोगों को ज्ञान या व्रतों से कुछ लेना-देना नहीं होता है। वे लोग, देवी-देवताओं, मंत्र-तंत्रों, पूजा-पाठ और सिद्ध पुरुषों के इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं। प्रयोजन एक ही होता है। उनके ऊपर लदी हुई विपत्तियों से किसी कदर छुटकारा दिलाने में उनका वरदान काम आये। ___ ऐसे लोग, गुणात्मक-आध्यात्मिक वैभव को देख ही नहीं सकते हैं। व्रत और ज्ञान, मनुष्य का आध्यात्मिक वैभव है। व्रतपालन करना, कोई खाने का खेल नहीं है। जैन साधु को व्रतपालन त्रिविध-त्रिविध रूप से करना होता है। मन, वचन और काया से व्रतपालन करना होता है। करण-करावण और अनुमोदन से व्रतपालन करना होता है। कुछ उदाहरणों से समझाता हूँ - साधुजीवन के नियम : ० साधु को मन से, वचन से, काया से हिंसा करने की नहीं है। नहीं करनी है, नहीं दूसरों से करानी है और जो भी हिंसा करते हैं, न उनकी अनुमोदना करनी है। ० साधु को मन से, वचन से, काया से मृषा-असत्य बोलना नहीं है। नहीं स्वयं बोलना है, न दूसरों से बुलवाना है, जो असत्य बोलते हैं, न उनकी अनुमोदना करनी है। ० साधु को मन से, वचन से, काया से चोरी (अदत्त) करनी नहीं है। नहीं स्वयं चोरी करनी है, न दूसरों से करवानी है, जो चोरी करते हैं, न उनकी अनुमोदना करनी है। ० साधु को मन से, वचन से, काया से मैथुन (अब्रह्म) का सेवन करना नहीं है। नहीं स्वयं मैथुन-सेवन करना है, न दूसरों से करवाना है, जो मैथुनसेवन करते हैं, न उनकी अनुमोदना करना है। ० साधु को मन से, वचन से, काया से परिग्रह रखना नहीं है। न स्वयं परिग्रह रखना है, न दूसरों से रखवाना है, जो परिग्रह रखते हैं, न उनकी अनुमोदना करना है। ० वैसे साधु को रात्रिभोजन की भी त्रिविध-त्रिविध प्रतिज्ञा होती है। ऐसे महाव्रतों का पालन करनेवाले साधु-पुरुषों के प्रति आप लोगों के हृदय में सद्भाव पैदा हो, तो उनकी सेवा किये बिना चैन नहीं मिले। For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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