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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२ प्रवचन-७७ PRO हर आदमी अपने अपने स्वार्थ की खींचातानी में उलझकर F औरों का शोषण करने पर उतारू हुआ जा रहा है, ऐसे में सघन आत्मीयता या भीतरी स्नेह की प्यास कहाँ बुझेगी? ० बाहरी तड़क-भड़क और दिखावे में समाज फँसता जा रहा है। ० ज्ञानी पुरुषों का सत्संग-संपर्क हमारी आत्मा के लिए संतर्पक सिद्ध होता है। पर आज का इन्सान सुख के पीछे पागल बना हुआ है, उसे ज्ञान के प्रकाश से क्या मतलब? वह तो निरे अज्ञान के अंधकार में भटक रहा है। ० जादू-टोना, दोरा-ताबीज, झाड़फूंक और मंत्र-तंत्र के चमत्कारों की गलियों में गुमराह हुए आदमी को सम्यक्ज्ञान देगा। कौन? ० कभी किसी की गरीबी का मजाक मत उड़ाओ। ० किसी के दिल को दु:खाना बड़ा पाप है। = ० किसी की मजबूरी, मायूसी पर ताने मत कसो। • प्रवचन : ७७ । परम कृपानिधि, महान् श्रुतधर, आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी, स्वरचित 'धर्मबिंदु' ग्रन्थ में गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्मों का प्रतिपादन करते हुए, चौबीसवाँ सामान्य धर्म बताते हैं : व्रतधारी और ज्ञानवान् महान् पुरुषों की सेवा का। जब तक व्रतों के प्रति और ज्ञान के प्रति आन्तरिक प्रीति नहीं होगी, तब तक व्रतधारी और ज्ञानी पुरुषों का मूल्यांकन नहीं होगा। अव्रत और अज्ञान में ही खुशी मनानेवाले लोग, व्रत और ज्ञान का महत्त्व कैसे समझेंगे? अपना स्वार्थ, अपना सुख : अव्रत यानी दुराचारों में फँसे मनुष्य, दुर्बलता से, रुग्णता से, चिन्ताओं से, अतृप्ति से, अशान्ति से और आशंका से ग्रसित होते हैं। अव्रत और अज्ञान से ग्रसित परिवारों की कैसी दयनीय स्थिति देखने को मिलती है? स्वार्थों की खींचातानी, आरंभ से लेकर अन्त तक चलती रहती है न? सभी अपनी-अपनी For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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