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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रवचन- ७६ ४१ ग्रन्थकार आचार्यदेव ने तो अति परिचय का एक ही नुकसान 'अवज्ञाअपमान' का बताया है, परन्तु वह तो निर्देश मात्र है। नुकसान एक नहीं, अनेक होते हैं। इसलिए कहता हूँ कि परिचय संतुलित रखिये। संतुलित परिचय सुख देनेवाला बनता है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir और, यदि आपको अति परिचय करना ही है तो एक मात्र परमात्मा से करिये। परमात्मतत्त्व से अति परिचय नहीं, पूर्ण परिचय करिये । परिचय ही नहीं, परमात्मा में लीन हो जाइये । संसार के रागी, द्वेषी और मोही जीवों के साथ कभी भी अति परिचय मत करें। संबंधों को मधुर बनाये रखें, परन्तु संपर्क बहुत कम रखें। संपर्क तो ज्ञानी, सदाचारी और विवेकी पुरुषों के साथ ही रखें। गुणवान्, श्रद्धावान् और चरित्रवान् पुरुषों के साथ ही संपर्क बनाये रखें। मात्र बुद्धि से, बल से और संपत्ति से आकर्षित होकर परिचय को गाढ़ नहीं बनाइये | तेइसवें गुण का विवेचन पूर्ण करता हूँ । आज बस, इतना ही । For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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