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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४ प्रवचन-७६ अति परिचय में जैसे वाणी पर संयम नहीं रहता है, वैसे रुपयों का लेन-देन भी होता है...करते हो न? परस्पर जेवरों का लेन-देन भी होता है...। कभी, इन बातों से ही परस्पर कलह हो जाता है। एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप किया जाता है। लड़ाई-झगड़ा भी हो जाता है। अनेक अनर्थ पैदा हो जाते हैं। आप गुणवान् होंगे, ज्ञानवान् होंगे...परन्तु अति परिचय किसी से भी करेंगे, तो आपकी अवज्ञा-उपेक्षा होगी। सतत सहवास उपेक्षा करवायेगा ही। अति से अवज्ञा : भारत में शत्रुजय तीर्थ की महिमा कितनी है? लोग कहाँ कहाँ से पालीताना जाते हैं? जाकर कितने भाव से यात्रा करते हैं? परन्तु जो जैन लोग पालीताना में रहते हैं, उनको पूछना कि वे लोग वर्ष में कितनी यात्रा करते हैं। यदि वह सच सच बतायेंगे तो मालूम पड़ेगा कि शत्रुजय की यात्रा में उनको कोई विशेष रुचि नहीं होती है। __हम लोग नासिक गये थे। नासिक-पंचवटी हिन्दुओं का बड़ा तीर्थ है। वहाँ की नदी में स्नान करने की बड़ी महिमा है। मैंने प्रत्यक्ष देखा था कि नासिक में रहनेवाले ही कुछ लोग उस नदी में कपड़े धोते थे और मलविसर्जन करते थे। तीर्थ का अति परिचय हुआ न? इसलिए तीर्थ की अवज्ञा होती है। क्या पता, इसलिए अनेक जैन तीर्थों में जैन-परिवार नहीं रहते हैं? इसलिए क्या जैन-परिवारों के हृदय में अपने तीर्थों के प्रति भक्तिभाव ज्यादा दिखाई देता है? मंदिरों के जो पुजारी होते हैं, उनके हृदय में परमात्मा के प्रति क्या भक्तिभाव होता है? परमात्मा की मूर्ति का अति परिचय, मूर्ति की आसातना करवाता है। आज आप लोग यदि मंदिरों में देखेंगे तो दिखाई देगा कि पुजारी कितनी आशातनाएँ करता है। सर्दी के दिनों में कई पुजारी बिना स्नान किये ही पूजा करते हैं | पूजा करते-करते, मन्दिर से बाहर आकर धूम्रपान करते हैं... वापस वैसे ही मन्दिर में आकर पूजा करने लगते हैं। उनके हृदय में यह भाव पैदा ही नहीं होता है कि 'ये मेरे भगवान हैं।' वैसे, जो श्रावक-श्राविकाएँ भी मंदिर में ज्यादा समय व्यतीत करते हैं... दो-तीन घंटे मंदिर में बिताते हैं...उन लोगों की भी ऐसी ही-पुजारी जैसी दशा होती है। मैंने कई मन्दिरों में देखा है कि भगवान की अभिषेक पूजा करते हुए, वस्त्र से प्रतिमाजी को साफ करते हुए श्रावक लोग आपस में गप्पे मारते रहते हैं। श्राविकाएँ भी बातें करती रहती हैं आपस में। For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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