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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ प्रवचन-९६ चाहे आप श्रीमंत हों, गरीब हों या मध्यम कक्षा के हों, आप सभी के लिए सच्ची शरण परमात्मा ही है। दुनिया के सारे के सारे संबंध मिथ्या हैं, कर्मों पर आधारित हैं। प्रतिकूल कर्म का उदय होने पर ये संबंध टूटते देरी नहीं लगेगी। आपको अपने प्राणों से भी अधिक चाहनेवाले, एक क्षण में मुँह मोड़ लेंगे। आप लोगों को क्या ऐसे अनुभव नहीं हुए हैं? तो फिर ऐसे कच्चे धागे जैसे संबंधों में क्यों उलझ रहे हो? परमात्मा से संबंध बाँध लो इस जीवन में। भले आज दुनियावालों के साथ अच्छे संबंध हों, रहने दो वे संबंध, परंतु परमात्मा के साथ तो संबंध बाँध ही लेना है। प्रतिदिन मनुष्य त्रिकाल परमात्मा के दर्शन करें, प्रतिदिन परमात्मा की अष्टप्रकारी पूजा करें| भक्तामर स्तोत्र, कल्याणमन्दिर स्तोत्र.... जैसे भावपूर्ण स्तोत्रों का पाठ करें। मात्र शब्दोच्चारण नहीं, अर्थ-भावार्थ को समझते हुए पाठ करें। तीर्थस्थानों में कि जहाँ लोगों की ज्यादा भीड़ नहीं होती हो, वहाँ जाकर पाँच-सात दिन रहें। वहाँ कुछ नियमों का दृढ़ता से पालन करें। जैसे कि ब्रह्मचर्य-पालन, रात्रिभोजन-त्याग, अभक्ष्य भोजन का त्याग, प्रतिदिन परमात्मादर्शन-पूजन, जाप, ध्यान, सत्समागम, स्वाध्याय....| तीर्थस्थानों में रहकर परमात्मा से निकटता स्थापित की जा सकती है। वैसे, वर्ष में कुछ समय ज्ञानी, संयमी, प्रशान्त ऐसे गुरुदेवों के सान्निध्य में जाकर रहना चाहिए। उनसे परमात्मस्वरूप के विषय में जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। कुछ गहराई में जाकर परमात्मा की पहचान प्राप्त करनी चाहिए। __ मुश्किल नहीं है यह काम! वर्तमानकाल में भी ऐसे कुछ सद्गृहस्थ हैं, बड़े व्यवसायवाले हैं, फिर भी समय निकालते हैं और तीर्थस्थानों में....कि जो ज्यादा प्रसिद्ध नहीं हैं, वहाँ जाकर सात-आठ दिन रहते हैं। गुरुजनों के पास जाकर चार-पाँच दिन रहते हैं। परमात्मस्वरूप को जानते रहते हैं....गहराई में जाकर समझते हैं और परमात्मध्यान में लीन होने का प्रयत्न करते हैं। इससे उन लोगों के जीवन में सामान्य धर्मों का पालन दिखाई देता है। सभी सामान्य धर्मों का तो नहीं, परन्तु कुछ दस-बारह सामान्य धर्मों का पालन तो करते ही हैं। सहजता से करते हैं। ___ आप लोग चार महीनों से प्रवचन सुन रहे हैं। गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्मों के विषय में पर्याप्त विवेचन आप लोगों ने सुना है। परंतु मनुष्य जितना सुनता है, सभी स्मृति में नहीं रह पाता है। और ये बातें स्मृति में रखने की For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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