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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-९१ १९५ की क्षमता सभी श्रोताओं में नहीं होती है। कुछ श्रोता तो ऐसे होते हैं कि जो विपरीत समझते हैं! अधूरी समझ खतरनाक होती है : मेरे साथ एक बार ऐसी घटना घटी। एक शहर में हम गये। वहाँ पर 'गीता जयंती' का दिन आया। कुछ अजैन विद्वान् मेरे पास आये। उन्होंने मुझसे प्रार्थना कि : 'हम गीता जयंती के उपलक्ष्य में प्रवचनसभा का आयोजन कर रहें हैं और उसमें आपका ही मुख्य प्रवचन रखना चाहते हैं। आप स्वीकृति दें तो हम अखबारों में दे दें। मैंने स्वीकृति दे दी और प्रवचन देने गया। मेरे साथ अपने समाज के भी काफी संख्या में लोग आये। मैंने गीता का एक श्लोक बोल कर उस पर अनेकान्तदृष्टि से विवेचना की। श्रोतावर्ग कि जो उद्बुद्ध था, वह प्रसन्न हुआ, चूँकि उनको गीता के विषय में नयी दृष्टि मिली थी। परन्तु जो गीता को जानते नहीं थे अथवा 'गीता तो मिथ्यात्वियों का ग्रन्थ है, ऐसा मानते थे, वे कुछ लोग दूसरे दिन मेरे पास आये और बोले - ___ 'महाराज साहब! आपने गीता पर क्यों व्याख्यान दिया? गीता तो मिथ्यात्वी का ग्रन्थ है।' मैंने उन लोगों को समझाया कि 'सम्यक दृष्टि मनुष्य के पास मिथ्यात्वी का ग्रन्थ भी सम्यक् बन जाता है। इसलिए हम गीता पर जैनदृष्टि से बोल सकते हैं।' तो वे भगत लोग बोलने लगे : 'हाँ हाँ, व्याख्यान तो आपने बहुत अच्छा दिया था... परंतु गीता पर बोले इसलिए हम नहीं समझ पाये...' वगैरह बातें की। अर्थ नहीं समझनेवाले बड़ा अनर्थ करते हैं। शास्त्र के अर्थ को समझने के लिए बुद्धि का तीसरा गुण 'ग्रहण' होना चाहिए। आप लोग तो 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ का अर्थ बराबर समझ रहे हो न? कभी अर्थ नहीं समझोगे तो चलेगा परन्तु 'अनर्थ' मत करना। गलत अर्थ मत करना। गलत अर्थ समझोगे तो आप स्वयं भी अनर्थ में फँस जाओगे। धर्म समझने के लिए बुद्धि पैनी चाहिए : जैसे व्यावहारिक शिक्षा में अच्छी बुद्धि चाहिए वैसे धार्मिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा में भी अच्छी बुद्धि चाहिए | आठ गुणों से युक्त बुद्धि चाहिए | व्यावहारिक शिक्षा में मान लो कि कम बुद्धि है तो भी चल सकता है, ज्यादा पढ़ाई नहीं कर सकता है, इतना ही नुकसान होता है, परन्तु धार्मिक क्षेत्र में यदि बुद्धि सूक्ष्म एवं कुशाग्र नहीं होती है तो नुकसान बहुत बड़ा होता है। वर्तमान जीवन एवं पारलौकिक जीवन में नुकसान होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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