SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-९१ १९४ में आये हैं तो व्याख्यान तो रखना ही चाहिए।' ऐसी मान्यता होती है। धर्म का उपदेश सुनने की इच्छावाले लोग कम होते हैं, दो-चार ही होते हैं। तो फिर दूसरे लोगों को पकड़-पकड़ कर लाते हैं! संख्यापूर्ति तो करनी ही पड़ती है न! हम लोग कहें कि 'व्याख्यान सुननेवाले नहीं हैं तो फिर व्याख्यान का आयोजन क्यों करते हो?' वे कहते हैं आप हमारे गाँव में पधारे हों और हम व्याख्यान-सभा का आयोजन नहीं करें, तो अच्छा नहीं लगता है। जैन समाज के अलावा दूसरे लोगों को तो सूचित करते ही नहीं! अन्यथा, दूसरे समाजों के लोगों में भी धर्मश्रवण की इच्छावाले लोग होते हैं और मालूम हो जाय कि जैन मुनिराज का धार्मिक प्रवचन हैं, तो वे लोग आते भी हैं। ___ सभा में से : सुश्रूषा का गुण नहीं है, परन्तु व्यवहार से भी व्याख्यान-सभा में आकर बैठता है, तो उसमें सुश्रूषा-गुण प्रकट हो सकता है? ___ महाराजश्री : हो सकता है, परन्तु मेरा अंदाज दो प्रतिशत का है! सौ में से दो व्यक्ति! वह भी निश्चित नहीं। सुश्रूषा के बिना श्रवण हो नहीं सकता। हो भी जाय, तो तत्त्वनिर्णय तक नहीं पहुँच सकता है। कोई किस्सा-कहानी या चुटकुले सुनने की बात नहीं कहता हूँ | हाँ, तत्त्वज्ञान की बात कह रहा हूँ | बुद्धि के आठ गुणों की बातें, तत्त्वज्ञान को लेकर बतायी जा रही हैं। मात्र किस्सा-कहानी सुनने की इच्छा तो अबोध बच्चे में भी होती है और मूर्ख मनुष्य में भी होती है। हर एक को तत्त्वश्रवण की जिज्ञासा नहीं होती : ज्ञानीपुरुषों का संपर्क हो, उनके संपर्क में बार-बार रहने का अवसर मिलता हो... तब तत्त्वश्रवण की इच्छा जाग्रत होती है। बहुत कम लोगों को स्वाभाविक इच्छा होती है तत्त्वश्रवण की। इच्छा से श्रवण किया जाय और श्रवण करते हुए तत्त्व को समझने का प्रयत्न किया जाय, तो तत्त्वप्राप्ति होती है। सुनें, परन्तु समझें नहीं तो क्या करना उस श्रवण को? बिना समझे भी श्रवण करनेवाले आते हैं न? सुनते हैं परन्तु समझते नहीं हैं! ऐसे लोगों को पूछ लो कभी कि 'व्याख्यान में क्या सुना और क्या समझे?' वे लोग इतना ही कहेंगे : 'व्याख्यान बहुत अच्छा था!' अथवा कहेंगे : 'व्याख्यान में मजा नहीं आया... एक भी कहानी नहीं थी!' बस, इतना ही वे कहेंगे। ऐसे लोग सुनते हैं परन्तु समझते कुछ नहीं! बुद्धि के दो गुण होते हैं : सुश्रूषा और श्रवण! तीसरा गुण 'ग्रहण' यानी अर्थबोध, नहीं होता है। जो सुनते हैं उसको समझने For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy