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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-८२ १०० इसलिए कभी अपने माने हुए सही अनुमान भी, अपने प्रभाव से बाहर के संयोगों को गलत सिद्ध कर देते हैं! अपने अनुमान, अपने निर्णय गलत हो जाते हैं। पुरुषार्थहीनता गलत है : । परन्तु इससे निराश नहीं होना चाहिए। २५ प्रतिशत अनुमान भी सही सिद्ध होते हैं, तो निराश नहीं होना है। जब अपना अनुमान गलत सिद्ध होता है, कार्य की सफलता नहीं मिलती है तब 'मेरा अनुमान गलत क्यों हुआ?' उसके कारणों की खोज करनी चाहिए और दूसरा अनुमान करते समय उन कारणों का विचार कर लेना चाहिए। केवल दुर्भाग्य का विचार कर, निराशा के सागर में डूब नहीं जाना चाहिए। ___'हमने तो द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव का विचार करके कार्य करने का विचार किया था। कार्य किया, परन्तु सफल नहीं हुए। अपना तो भाग्य ही प्रतिकूल है... छोड़ो अब यह सब सोचना...।' ऐसे विचार करने से मनुष्य पुरुषार्थहीन बन जाता है। पुरुषार्थ का मार्ग ऐसा होता है कि जिसमें मनुष्य को हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना पड़ता है। ऐसा मनुष्य धीर वीर होता है। कभी न कभी उसको सफलता मिलती ही है। निष्फलता में से वह हमेशा नया पाठ सीखता रहता है। __ द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का विचार तभी परिपक्व होगा जब मनुष्य की कार्यसिद्धि के लिए लगन हो, सूझ-बूझ हो और तत्परता हो। कल्पनातीत सफलताएँ उपलब्ध हो सकती हैं। संसार की अनेकानेक महती सफलताओं का इतिहास इसी आधार पर लिखा गया है। यदि मन में उदासी होगी, कार्य के प्रति उपेक्षा-भाव होगा और कार्य करने में ढील रही तो आधे शरीर से और आधे मन से कार्य होगा। कार्य आधे-अधूरे, बेढंगे और निम्नस्तर के बनेंगे। एक बात याद रखें कि सफलताएँ आसमान से नहीं टूटती हैं। सुनियोजित परिश्रम और मन की लगन से ही बन पड़ती हैं। इस तथ्य को अपनाने वाले समय-समय पर अपने-अपने प्रयोजनों में आश्चर्यजनक सफलताएँ प्राप्त करते रहे हैं। संकल्पबल बनाइये! ___ मानवी-संकल्प का चुम्बकत्व इतना प्रबल है कि वह किसी को भी घसीट कर खिंचते चले जाने के लिए विवश कर सकता है। इसी दृष्टि से टीकाकार For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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