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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-५६ ८६ अपने 'डिपार्टमेन्ट' के मेनेजर को खुश रखने के लिए और कुछ अपने मित्रों को खुश करने के लिए वैसा वस्त्र-परिधान और वैसी हेयर स्टाइल रखती हैं कि जो मात्र देहप्रदर्शन होता है। शील और सदाचार उनकी कल्पना के बाहर के तत्त्व बन गये हैं। उनकी पर्स में गर्भनिरोधक दवाइयाँ होती हैं। फिर भी यदि गर्भाधान हो जाता है तो 'एबोर्शन' करने में उसे कोई पाप नहीं लगता है। क्रूर हृदय में भृणहत्या करने में उसे कोई संकोच नहीं होता है। दुर्भाग्य से, अपने समाज की भी कुछ लड़कियाँ और महिलाएँ इस मार्ग पर चल रही हैं। कौन बचाये - इनको? भौतिक शारीरिक सुख-सुविधा ही जिनकी दृष्टि बन गई है, उनको कोई बचा नहीं सकता। जिनको बचना ही नहीं है, डूबना ही है, उनको कोई भी नहीं बचा सकता। __ जिनको बुराइयों से बचना होता है, बचने की तीव्र इच्छा होती है, वे लोग कैसा वस्त्र-परिधान करेंगे? वे लोग कैसे स्थानों में घूमेंगे? वे लोग किस प्रकार के परिचय करते रहेंगे? आत्मदृष्टि के अभाव में संस्कृति का नीलाम : __ आत्मदृष्टि के अभाव में कुछ ऐसा ही होता रहता है । 'मैं आत्मा हूँ, यह विचार आता है क्या आप लोगों को? यह शरीर जो है, वह मैं नहीं हूँ, शरीर विनाशी है, मैं अविनाशी हूँ। शरीर में असंख्य विकार हैं, मैं अविकारी हूँ।' ऐसे विचार आते रहते हैं क्या? ऐसे विचार मात्र आप श्रावक-श्राविकाओं को ही आयें ऐसा नहीं है, जो लोग जैन नहीं हैं, अजैन हैं, परन्तु किसी भी धर्म में श्रद्धा रखते हैं, उनको भी ऐसे विचार आने चाहिए। जितने भी आत्मवादी दर्शन हैं वे सभी आत्मस्मृति का, आत्मकल्याण का उपदेश देते हैं। कैसा जीवन जीने से आत्मकल्याण होता है और कैसा जीवन जीने से आत्मा का अहित होता है, ये बातें, इस देश के घर-घर में गूंजती थीं। माता-पिता की ओर से ही वैसी शिक्षा दी जाती थी। वस्त्र-परिधान के विषय में भी अपनी मर्यादाओं का बोध होता था। इससे पारिवारिक और सामाजिक समस्याएँ कम पैदा होती थीं। यह भी सत्य घटना है : जो लोग अपने देश के अनुरूप, अपने समाज के अनुरूप वस्त्र नहीं पहनते वे लोग कभी आफत में फँस जाते हैं। कुछ वर्ष पूर्व मैंने उत्तर प्रदेश का एक ऐसा ही किस्सा पढ़ा था। एक गाँव के दो लड़के बनारस विश्वविद्यालय में For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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