SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-५६ 'क्या करें? लड़का मानता नहीं, लड़की मानती नहीं!' मनस्विता और औद्धत्य भी व्यापक बना है न? किसी की बात मानता नहीं, मन में आये वैसा करना, यह आज के समय की सबसे बड़ी समस्या बन गई है। ___ यूँ देखा जाय तो अंग्रेजों की वेश-भूषा 'इन्टरनेशनल' बन गई है। पेन्ट और शर्ट, पेन्ट और बुशशर्ट! पेन्ट, शर्ट, कोट, टाई....! फिर कोई भी ऋतु हो! सर्दियों में और गर्मियों में....ये ही वस्त्र! श्रीमन्त हो, गरीब हो या मध्यम स्थिति का हो । वस्त्र-परिधान में वैभव-संपत्ति कोई माध्यम नहीं रहा है। कपड़ों का कमाल : एक बार जब हम राजस्थान में विहारयात्रा कर रहे थे, रास्ते में एक फैशनेबल वस्त्र पहना हुआ युवक मिल गया | स्टेशन से अपने गाँव जा रहा था। ऐसे वस्त्र पहने थे उसने, जैसे गाँव का ठाकुर हो! हमने उसका परिचय पूछा तो पता लगा कि वह अहमदाबाद की एक मिल का मजदूर था! हमने कहा : 'भाई तुम ऐसे लगते हो कि जैसे गाँव के ठाकुर हो!' तो वह हँसने लगा। उसने कहा : 'इससे गाँव में लोग मेरी ओर देखते रहते हैं और मानते हैं कि मैं अहमदाबाद में बहुत रुपये कमाता हूँ। मेरी इज्जत बढ़ती है।' मैंने कहा : ‘परन्तु गाँव का कोई आदमी अहमदाबाद आ जाय और तुम्हें मजदूर के रूप में देखेगा तब तुम्हारी इज्जत का क्या होगा?' उसने मेरे सामने देखा, कुछ बोला नहीं और गाँव चला गया! सत्य घटना : गरीब होने पर भी श्रीमंत दिखने की आकांक्षा आज बहुत व्यापक दिखाई दे रही है। जब कि प्राचीन काल में, श्रीमंत होने पर भी श्रीमंताई का प्रदर्शन करने की नफरत कैसी सख्त होती थी इस विषय पर एक सच्ची घटना सुनाता हूँ। दक्षिण में तब माधवराव पेशवा का राज्य था। पेशवा के प्रधान मंडल में 'रामशास्त्री' नाम के प्रकांड विद्वान का भी समावेश था। वे प्रधान तो थे ही, साथ-साथ वे न्यायाधीश भी थे और पेशवा परिवार के गुरुपद पर भी उनकी प्रतिष्ठा थी। उस समय भारत में रामशास्त्री जैसे बहुत थोड़े न्यायाधीश थे। कहा जाता था कि न्याय तो रामशास्त्री का! ___ नये वर्ष का पवित्र दिन था। नगर की महिलाएँ राजमाता के दर्शन करने और नूतन वर्ष के अभिनन्दन देने के लिए राजमहल में जाती थीं। रामशास्त्री For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy