SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-५६ ८१ गतानुगतिकता से वस्त्र परिधान कर रहे हो। सौन्दर्य की दृष्टि भी संस्कृत नहीं है, विकृत है। सच्चा सौन्दर्यबोध भी नहीं है। वस्त्र-परिधान, मनुष्य-जीवन की महत्त्वपूर्ण क्रिया है। अपने देश में इसका विशेष महत्त्व है, क्योंकि इस देश में जन्म पानेवालों का विशेष महत्त्व है। यह महत्त्व मोक्षमार्ग की दृष्टि से है, धर्मपुरुषार्थ की दृष्टि से है। यह महत्त्व यदि आप समझेंगे तो ही वस्त्र-परिधान की जो बात यहाँ मैं बताऊँगा वह बात आप समझ पायेंगे। वस्त्र-परिधान के विषय में पाँच बातें यहाँ बताई गई हैं : १. आपके वैभव के अनुरूप वेश-भूषा होनी चाहिए। २. आपकी उम्र के अनुरूप वेश-भूषा होनी चाहिए । ३. आपकी परिस्थिति के अनुरूप वेश-भूषा होनी चाहिए। ४. आपके देश के अनुरूप वेश-भूषा होनी चाहिए और ५. लोगों में उपहास न हो, वैसी वेश-भूषा होनी चाहिए। वस्त्र-परिधान करते समय इतनी बातें आपके ध्यान में रहनी चाहिए | इन बातों को ध्यान में रखते हुए आपको वस्त्र-परिधान करना चाहिए। कहिए, इन में से कितनी बातों का ध्यान रखते हो? हाँ, आप लोग जो व्यापारी हैं, प्रौढ़ और वृद्ध हैं, उनकी वेश-भूषा तो फिर भी ठीक है, उचित और मर्यादा में है, परन्तु जो युवक हैं, युवतियाँ हैं, उनकी वेश-भूषा कैसी हो गई है? चूंकि उनको यह मार्गदर्शन मिला नहीं है। यदि किसी को मिला है, तो इस मार्गदर्शन के अनुसार वह जी नहीं सकता है! क्योंकि ज्यादातर युवकयुवतियाँ जिस प्रकार के वस्त्र पहनते होंगे, उसी प्रकार के कपड़े यदि नहीं पहनें तो उनका उपहास होता है! उस उपहास को सहन करते हुए अपनी उचित वेश-भूषा करनेवाले कितने? इतना सत्त्व कितनों का? फैशन ज्यादा कपड़े फाड़ता है : युवावर्ग में आज 'फैशन' और अनुकरण ही व्यापक बना है। सिनेमा और नाटक देखने वाले, 'एक्टर' और 'एक्ट्रेसों' की वेश-भूषा देखते हैं और उनका अनुकरण करते हैं। और ज्यादातर लोग जब वैसी वेश-भूषा पसंद करते हैं तब लोगों को कुछ अनुचित भी नहीं लगता है। माता-पिता को भी अनुचित नहीं लगता है। किसी माता-पिता को अनुचित लगता है तो वे रोक नहीं पाते । For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy