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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६ प्रवचन-५५ महाराजश्री : नहीं देना चाहिए, इतना ही नहीं, लोगों को सावधान भी कर देना चाहिए। फिर भी मैं आपको कहता हूँ कि उन लोगों का 'बिजनेस' चलता रहेगा! 'मुझे अमुक देव प्रसन्न है....अमुक देवी प्रसन्न है!' बस, दो चार सहयोगी मिल जाने चाहिए और कुछ आडंबर! फिर चालू हो जायेगा तमाशा! सत्य घटना - एक ढकोसले की : ____ बंबई के उपनगरीय विस्तार में एक राजस्थानी परिवार रहता है। लड़के की शादी हुई। पुत्रवधू घर में आई। अभिमानी थी, सास के साथ झगड़े शुरू हुए और बहू अपने मायके राजस्थान चली गई। एक वर्ष तक पितृगृह में रही। पर्युषणपर्व में १५ दिन के उपवास किये। उसके माता-पिता ने पूछा : 'तू १५ उपवास कैसे करेगी?' उसने कहा : 'मेरे स्वप्न में गुरुदेव आये और उन्होंने कहा कि तू १५ उपवास करना । मैं तेरे लिए देवलोक से वासक्षेप भेजूंगा | मेरी तसवीर में से वासक्षेप मिलेगा! और उसने वासक्षेप की एक पुड़िया बताई, जो उसको गुरुदेव ने दी थी! बस, बात चल पड़ी सारे गाँव में! लोग उसका दैवी वासक्षेप लेने आने लगे! बात पहुँची उसके ससुराल में बंबई! वे लोग भी तुरन्त राजस्थान पहुँचे । पुत्रवधू का मान-सम्मान देखा! वे लोग भी मुग्ध बने । पारणा करा कर बंबई ले आये। गुरुदेव का फोटो भी साथ में ले आये, जिसमें से दैवी वासक्षेप निकलता था! बंबई में भी हजारों नहीं, लाखों राजस्थानी जैन बसते हैं। लोगों को ज्यों-ज्यों मालूम पड़ता गया, त्यों-त्यों उसके घर लोग पहुँचने लगे। उस स्त्री के सर में से कंकु निकलने लगा था! घर में उसकी सास, उसके श्वसुर, उसका पति....सब उसके आज्ञांकित बन गये थे! बात अखबारों तक पहुँची । अखबारों के प्रतिनिधि भी बात क्या है - जानने के लिए उस महिला के घर पहुंचे। उन प्रतिनिधियों ने उससे पूछा : 'आप हमें वासक्षेप बतायेंगी? जो वासक्षेप आपके गुरुदेव देवलोक से भेजते हैं!' उस महिला ने गुरूदेव की तसवीर के पीछे से एक पुड़िया निकाली और बताई। 'क्या सीधी ऐसी पुड़िया ही आती है या आप पुड़िया बनाती हैं?' 'नहीं नहीं, यह पुड़िया ही आती है!' यह सुनकर अखबारों के प्रतिनिधि एक-दूसरे के सामने देखने लगे! तो एक प्रतिनिधि बोला : 'भाइयो, हमारा अखबार 'मुंबई समाचार' तो देवलोक में भी जाता है....देखो पुड़िया का कागज!' For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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