SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-५५ ७५ कक्षाएँ होती हैं। भिन्न भिन्न दृष्टि से वे कक्षाएँ होती हैं। संपत्ति की दृष्टि से और गुणों की दृष्टि से। देवों की सृष्टि में एक व्यंतर जाति होती है। व्यंतर जाति में भी अनेक प्रकार हैं। उसमें एक प्रकार होता है भूतों का | हालाँकि सभी भूत उपद्रवी नहीं होते। भूत अच्छे भी होते हैं और बुरे भी होते हैं। यदि कोई मनुष्य वासना को लेकर मरता है और भूतयोनि में जन्म पाता है, वहाँ यदि उसकी वासना-अच्छी या बुरी-जाग्रत होती है तो वह अपने दिव्य ज्ञान से जिसको 'विभंग ज्ञान' कहते हैं, उस ज्ञान से वह अपनी गत जन्म की घटनाओं में यदि हत्या की घटना देखता है, यानी उसकी हत्या हुई हो, उसके प्रेमपात्र की हत्या हुई हो और उसका बदला लेने की वासना रह गई हो, तो वह मनुष्यलोक में आता है | बदला लेकर छोड़ता है | __वैसे, उसके पूर्वजन्म में यदि किसी ने उसकी संपत्ति छीन ली हो, किसी ने बलात्कार किया हो, अपहरण किया हो....और वैर की वासना लेकर मरा हो, तो उसका बदला लेने के लिए वह मनुष्यलोक में आता है। बदला लेकर वापस लौट जाता है अथवा मनुष्यलोक में भटकता रहता है। जिस प्रकार वैर की वासना से भूतयोनि के देव यहाँ आते हैं वैसे प्रेम की वासना से भी आते हैं। ये देव आकर अपने प्रेमपात्र की रक्षा करते हैं, उसको धन-संपत्ति देते हैं और अनेक प्रकार के उपहार देते हैं। ठगों से-असली-नकलियों से सावधान! : परन्तु एक बात अच्छी तरह समझ लेना कि असल की नकल होती ही है! कुछ लोग ऐसा दावा करते हैं कि उनके शरीर में देव आता है! कुछ के शरीर में भूत-प्रेत आता है! कुछ स्त्री-पुरुष, जो ऐसा दावा करते हैं, मैंने देखा है कि नब्बे प्रतिशत दंभी होते हैं। अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए, भूत-प्रेत और देवों में श्रद्धा रखनेवालों को धोखा देते हैं। लोगों को ठगते हैं। ऐसे लोग, बुद्धिमानों को देव-देवी के विषय में अश्रद्धा पैदा करते हैं। परन्तु दुनिया में दु:खी और मूर्ख लोग नहीं होते तो धूर्तों का अस्तित्व ही नहीं होता! कभी कभी मनुष्य ज्यादा दुःखों से मूर्ख बन जाता है। बुद्धिमान् मनुष्य भी जब गहरे संकट में फँस जाता है तब मूर्ख बन जाता है और किसी ठग के पल्ले पड़ जाता है। सभा में से : मालूम हो जाय कि यह धूर्त है, तो उसको फिर प्रोत्साहन नहीं देना चाहिए न? For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy