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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-५१ ____ ३० बैठकर सीधे बम्बई-जयपुर पहुँच सकें! परिवार की चिंता नहीं है, परिवार को राजस्थान में सुरक्षित कर दिया ।' __ परन्तु मैंने देखा कि उस महानुभाव का लक्ष्य धर्मपुरुषार्थ नहीं था, उसका लक्ष्य अर्थपुरुषार्थ था। पैसा कमाने की तीव्र लालसा थी। येनकेन प्रकारेण अर्थप्राप्ति करने के लक्ष्य से जो मारवाड़ी 'साउथ' में गये हैं, असम और बंगाल में गये हैं, वहाँ एक दिन उपद्रव होनेवाले ही है। जब तक निरक्षरता थी और सरकार की उपेक्षा थी तब तक ये मारवाड़ी व्यापारी, वहाँ के लोगों को लूटते रहे! कल्पनातीत ब्याज लेते रहे। वहाँ की प्रजा की निरक्षरता का और भोलेपन का फायदा उठाते रहे। परन्तु अब भारत के ज्यादातर प्रान्तों में निरक्षरता दूर हुई है, 'एज्युकेशन' बढ़ने लगा है तो वहाँ की प्रजा व्यापार को समझने लगी है। एक दिन विद्रोह होगा इन मारवाड़ी व्यापारियों के सामने । बड़े उपद्रव पैदा हो जायेंगे। उस समय अर्थ, काम और धर्म तीनों का विनाश हो जायेगा उनके जीवन में। जीवन ही समाप्त हो सकते हैं। पैसे का पागलपन अनेक पापों की जड़ है : सभा में से : मारवाड़ियों के प्रति इतना अभाव उन प्रदेशों में कैसे हो गया? महाराजश्री : धर्म के मूलभूत सिद्धान्तों की उपेक्षा और धन कमाने की तीव्र अपेक्षा! धर्म का मूल है दया और करूणा | इन व्यापारियों में नहीं रही है दया और नहीं रही है करुणा। इनके हृदय कठोर और निर्दय बन गये हैं। धन कमाने के लिए ये व्यापारी दया और करुणा का विचार भी नहीं करते । शायद उनके लिए दया नाम का कोई धर्म ही नहीं है। करुणा नाम का कोई तत्त्व ही नहीं है। उनके लिए परम तत्त्व है पैसा! इसलिए वे कोई भी पाप कर सकते हैं। ___ गरीब और अज्ञान प्रजा के साथ कब तक अन्याय करने का? और वह अन्याय लंबे समय तक चल भी नहीं सकता न? अति शोषण में से विद्रोह पैदा होता है। चीन में साम्यवाद-हिंसक साम्यवाद कैसे पैदा हुआ था? रशिया में साम्यवाद कैसे पैदा हुआ था? और अपने देश में - बंगाल में साम्यवाद कैसे फैला? आप लोग इन बातों को जानते हो या नहीं? श्रीमन्तों ने गरीबों का बहुत शोषण किया, इससे गरीबों में विद्रोह की भावना आग की तरह भड़क उठी। अनेक उपद्रव शुरू हो गये। इसमें भी, 'नक्सलवाद' ने तो घोर हिंसा का मार्ग ही ले लिया। For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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