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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६० प्रवचन-७२ भोजन का ख्याल बचपन से करो : महाराजश्री : कोई परिमाण नहीं होता है भोजन करने में | जठराग्नि माँगे उतना भोजन देना चाहिए । 'न भुक्तेः परिमाणे सिद्धान्तोऽस्ति ।' हाँ, एक बात समझना, क्षुधा और रसलोलुपता का भेद ख्याल में होना चाहिए। क्षुधा न हो परन्तु प्रिय खाद्य पदार्थ देखकर 'मुझे तो भूख लग गई हैं....' ऐसा मत करना। बच्चे जो होते हैं, उनको क्षुधा का ख्याल नही होता है। उसको तो प्रिय पदार्थ दिखाई देगा तो माँगता रहेगा और खाता रहेगा। इसलिए माताओं को पूरा ख्याल रखने का होता है कि बच्चा रसवृत्ति से ज्यादा भोजन न कर ले। अन्यथा, बच्चे की पाचनशक्ति मंद पड़ जायेगी.... पेट में दर्द होगा.... बीमार हो जायेगा। कुछ लोग बोलते हैं न कि 'आज तो मुझे भूख ही नहीं लगी है, खाने की इच्छा ही नहीं है....।' परन्तु यदि सामने प्रिय भोजन आ जाय तो? सभा में से : भूख खुल जाती है। महाराजश्री : भूख नहीं खुलती है.... रसनेन्द्रिय का हमला होता है! रसवृत्ति जाग्रत हो जाती है। घर में पेट भर भोजन किया हो और 'ऑफिस' जाने निकले हो, रास्ते में कोई मित्र मिल जाय और 'होटल' में ले जाय एवं आपकी प्रिय वस्तु सामने आ जाय.... तो खा लोगे न? यह है रसनेन्द्रिय की परवशता, यह है रसलोलुपता। इसका त्याग करना चाहिए। जठराग्नि को मंद नहीं होने देना चाहिए। वैसे, यदि आप भूख से कम भोजन करेंगे तो शरीर दुर्बल बनेगा। कम भोजन भी नहीं करना चाहिए । हाँ, ‘ऊनोदरी' अवश्य रखनी चाहिए | दो-चार कौर कम खाने चाहिए | भूख होने पर भी जिनको पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है, वे लोग शरीर से दुर्बल होते हैं। ___ कहने का तात्पर्य यह है कि संतुलित भोजन करना चाहिए | ज्यादा नहीं, कम नहीं। इससे शरीर स्वस्थ रहता है । स्वस्थ शरीर तीनों पुरूषार्थ-धर्म, अर्थ और काम - करने में समर्थ बनता है। शरीर स्वस्थ रहने से मन भी स्वस्थ रह सकता है। ज्यादा भोजन करनेवालों की बुद्धि कुंठित हो जाती है। कम भोजन करनेवालों का स्वभाव उग्र और चंचल हो जाता है। यानी भूखा मनुष्य जल्दी उग्र हो जाता है। इसलिए संतुलित भोजन करना चाहिए। For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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