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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-५० जीवन में होता रहेगा। यदि एक पाप आपने किया, आपको मजा आ गया, आपके जीवन में वह पाप पुनः-पुनः होता रहेगा। फिर वह आदत बन जायेगी....| पापसेवन की आदत प्राण लेकर छोड़ती है। जुआ खेलनेवाले को यदि जुआ खेलने में मज़ा आता है पहली दफा बस, वह जुआरी बनेगा ही! जब बरबाद होगा तब ही आदत छूटेगी। वैसे, शराब पीनेवाले को यदि मज़ा आ गया शराब पीने में, तो वह पियक्कड़ बनेगा ही। किसी भी उपदेशक का उपदेश भी उसको असर नहीं करेगा। क्योंकि उसको पीने में मज़ा आ गया है! __सभा में से : जुआ खेलने और शराब पीने में मजा आता है, इसलिए तो मनुष्य खेलता है और पीता है। महाराजश्री : वैसा मजा किस काम का, कि जो मनुष्य को तन-मन और धन से बरबाद कर दे! यह पापों का मज़ा ही तो शत्रु है! अच्छे कार्यों में मज़ा आना चाहिए। वैसा एक अच्छा कार्य चुनना चाहिए कि जिसमें तुम्हारा मन रम जाय! वैसी एक-दो धर्मक्रियाएँ जीवन में होनी चाहिए कि जिस धर्मक्रिया में मजा आ जाय! ऐसे लोग भी देखने को मिलते हैं कि जिनको परमात्मा की भक्ति में बड़ा मज़ा आता है! दो-दो घंटे तक परमात्मा की पूजाभक्ति करते रहते हैं...उनको मज़ा आता है वैसा करने में! कुछ लोगों को धर्मगुरूओं का सत्संग करने में मज़ा आता है, घंटों तक धार्मिक प्रवचन सुनते रहते हैं। कुछ लोगों को जनसेवा में, पशु-पक्षी की सेवा में आनन्द आता है...जीवनपर्यंत वे सेवाकार्य करते रहते हैं। इस प्रकार किसी न किसी अच्छे कार्यों में आनन्द की वृत्ति तृप्त होनी चाहिए। तो बुरे कार्यों में हर्ष नहीं होगा। बुरे कार्य कभी हो भी जायेंगे, परन्तु उनमें हर्ष नहीं होगा। शत्रुओं को पहचानो और छोड़ दो उन्हें : ___ काम, क्रोध, लोभ, मद, मान और हर्ष - इन आन्तरिक शत्रुओं की पहचान तो हो गई न? भिन्न भिन्न वेश-भूषा में ये शत्रु मिलते रहते हैं...परख लेना उनको, अन्यथा अपने जाल में फँसा लेंगे। और जब मनुष्य आन्तरिक शत्रुओं को पहचानकर, उनसे छुटकारा पाने का प्रयत्न करता है, तब इन्द्रियों पर संयम करना सरल बन जाता है। करना है इन्द्रियों पर संयम? पाना है इन्द्रियों पर विजय? इसलिए आन्तरिक शत्रुओं से छुटकारा पाना अनिवार्य बताया है। यानी इन्द्रियविजय का उपाय है आन्तरिक शत्रु पर विजय! For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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