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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-६६ १८७ -.संभव है कि माता-पिता संतानों की तमाम इच्छाएं पूरी नहीं भी कर सकते। उस समय संतानों को माता-पिता के संजोगों का विचार करना चाहिए। उनके प्रति रोष और आक्रोश नहीं करना चाहिए। उपकारियों के दिल को तोड़ना यह सबसे बड़ा पाप है। वास्तविकता जान लेने के पश्चात् राग-द्वेष नहीं होते हैं। सच्चे कार्यकारण भाव जान लेने से समत्व की आराधना सरल हो जाती है। मातृपूजक और पितृपूजक जिन्हें बनना है.... उन्हें इन कर्तव्यों का पालन प्रेम से करना चाहिए : १. पादप्रक्षालन। २. समय पर भोजन देना, कपड़े देना, बिछौना बिछाना, स्नान करवाना वगैरह। ३. सेवा स्वयं करना। ४. उनके आदेशों का पालन करना। ५. सभी कार्य उन्हें पूछकर करना। ६. माता-पिता आदि डांटे तो सामने जवाब देकर अविनय नहीं करना चाहिए। ७. उनकी धार्मिक भावनाओं को यथाशक्ति पूरी करना। .माता-पिता संतानों के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करें.... संतान माता-पिता के प्रति जो कर्तव्य हैं, उनका पालन करते रहें। * प्रवचन : ६६ परमोपकारी महान् श्रुतधर आचार्यश्री हरिभद्रसूरीश्वरजी, स्वरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में, गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्मों का प्रतिपादन करते हुए सोलहवाँ सामान्य धर्म बता रहे हैं। सोलहवाँ सामान्य धर्म है - माता-पिता की पूजा । ___ माता-पिता पूजनीय होते हैं उपकार के माध्यम से। उपकार करनेवाले पूजनीय बनते हैं, उपकृत जीव पूजक होने चाहिए। उपकारी निरहंकारी होने चाहिए, उपकृत जीव कृतज्ञ होने चाहिए | उपकारी आत्माएँ निरपेक्ष वृत्तिवाली चाहिए, उपकृत जीव प्रत्युपकार की भावना से भरपूर होने चाहिए। गृहस्थ धर्म सापेक्ष धर्म होता है। वह निरपेक्ष बनकर धर्म नहीं कर सकता। माता-पिता, पुत्र वगैरह की अपेक्षा से उपकारी बनते हैं न? पुत्र वगैरह मातापिता की अपेक्षा से प्रत्युपकार कर सकते हैं। यह है सापेक्षता! परन्तु उपकार For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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