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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-५८ १०८ चेष्टा करते रहे हैं। अहिंसाप्रिय के हृदय को क्रूरता से कुचल रहे हैं। आप लोग सावधान रहें। किसी भी निमित्त से शराब आपके जीवन में प्रविष्ट नहीं होनी चाहिए। शराबी के साथ संबंध ही नहीं रखना चाहिए| शराबी से मित्रता नहीं होनी चाहिए। अर्थलोभ अति खतरनाक है : __सभा में से : यदि हम लोगों को मिनिस्टरों के काम निकलवाना होता है, कम्पनी के 'डायरेक्टरों' से काम लेना होता है, सरकारी अधिकारियों से काम निकलवाना होता है....तो उनके साथ बैठकर शराब पीनी पड़ती है.... महाराजश्री : ऐसे कौन-से काम करवाने होते हैं? ऐसे काम ही छोड़ दो। अर्थलोभ बहुत बुरा है। ज्यादा धन कमाने के लिए ही ऐसे पापाचार करने पडते हैं ना? पापाचारों के सेवन से धन नहीं मिलता है, पुण्यकर्म के उदय से ही धन मिलता है। दूसरी बात, मात्र मिनिस्टरों के साथ या सरकारी अधिकारियों के साथ ही शराब पीने वाले पीते हैं, ऐसा नहीं। जब आदत बन जाती है तब घर मे और होटल में भी पीते हैं। यह व्यापक पापाचार हो गया है। बचना होगा इस पापाचार से। सभा में से : कुछ दवाइयों में भी शराब आती है.... महाराजश्री : ऐसी दवाइयों का उपयोग नहीं करना चाहिए। डाक्टर से पूछ लेना चाहिए। दूसरी दवाइयाँ मिलती हैं जिनमें शराब नहीं होती है। बचने की प्रबल इच्छा होगी तो बच सकोगे। __तीसरा व्यापक पापाचार है जुए का | आजकल लोग कितना जुआ खेलते हैं? श्रीमन्त खेलते हैं और गरीब भी खेलते हैं। श्रीमन्त लोगों का फैशन हो गया है जुआ खेलने का | ऐसी क्लबें चलती हैं। जहाँ प्रतिदिन-२४ घंटा जुआ खेला जाता है। चलती हैं न ऐसी क्लबें? सभा में से : आपने कैसे जान लिया? महाराजश्री : एक शहर में जिस उपाश्रय में हम वर्षाकाल व्यतीत कर रहे थे, उसके पीछे ही एक ऐसी क्लब थी। एक दिन रात को १२ बजे वहाँ जोरदार झगड़ा हुआ। जुआरी आपस में लड़ रहे थे। मैं जाग रहा था। खिड़की से मैंने देखा....प्रातःकाल एक भक्त से पूछा कि : 'यह मकान किसका है और रात में वहाँ इतने सारे लोग क्यों इकट्ठे होते हैं?' उस भक्त ने बताया For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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