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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रवचन- ३२ क्या चाहते हो आप ? www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८८ सभा में से : भावना तो ऐसी होती है कि सद्गति में ही जायँ और दुर्गति में नहीं जायँ, परन्तु हमारे काम ऐसे हैं कि हम सद्गति में नहीं जा सकेंगे। महाराजश्री : तो आपको लगता है कि आप दुर्गति में जायेंगे? यानी नरक अथवा तिर्यंचयोनि में जायेंगे ? जानते हो नरकयोनि का स्वरूप? सात नरक की घोर वेदनाओं का ज्ञान है? यदि आपको ज्ञान हो कि 'ऐसा काम करूँगा तो जेल में जाना पड़ेगा ही,' तो क्या आप वैसा काम करेंगे? यदि आपको जेल की जिंदगी का ज्ञान होगा तो वैसा काम नहीं करेंगे। नरकगति और तिर्यंचगति के दुःखों का जिसको ज्ञान हो वह वैसे काम करेगा क्या? विराट पशुगति-तिर्यंचगति का कभी गंभीरता से चिंतन किया है? उस गति के भयानक दर्द और भरपूर दुःखों का कभी विचार किया है ? क्यों जानबूझकर अपने भविष्य को दुःखमय बनाते हो ? हाँ, तिर्यंचगति के दुःखों से भी ज्यादा दु:ख इस जीवन में हों और उस गति में जाना चाहते हों तो भले अनीति- - अन्याय करो। भले माया और कपट करो । आदिवासी को जेल में भी मजा आ गया ! अभी-अभी एक कहानी पढ़ने में आयी । बड़ी दिलचस्प कहानी थी । उड़ीसा प्रान्त में भीषण दुष्काल अकाल का आतंक छा गया था । आदिवासी- प्रदेश में लोगों के पास खाने को अन्न का, धान्य का एक दाना भी नहीं रहा था। पहनने को पूरे वस्त्र भी नहीं थे । वहाँ की महिलाएँ भी अर्धनग्न दशा में जी रही थीं। एक आदिवासी पुरुष अत्यंत भूखा .... एक खेत में जमीन खोद रहा था ! जमीन में से वह कंद निकाल रहा था ! इतने में उस खेत का मालिक वहाँ पहुँच गया। आदिवासी को पकड़ा, बहुत पीटा और जाकर पुलिस को सुपुर्द कर दिया। पुलिसवाला उसको जेल में ले गया, उसको एक महीने की सजा मिली। आदिवासी बहुत खुश हो गया। क्योंकि उसको रहने के लिए पक्का मकान मिला। खाने को पेटभर भोजन मिला। कितने दिनों से उसने रोटी के दर्शन नहीं किये थे! वह तो उस खेत के मालिक का उपकार मानने लगा, उस पुलिसवाले को भी धन्यवाद देने लगा ! For Private And Personal Use Only एक दिन वह पुलिसवाला जेल में आया हुआ था, इस आदिवासी ने पुलिसवाले को देख लिया । दौड़कर पहुँचा पुलिसवाले के पास ! उसके पैरों में
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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