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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९ प्रवचन-२८ तकलीफें सहन कर दूसरों का भला करें! आप में हो सकती है क्षमता, परन्तु आपकी पत्नी में नहीं हो सकती! आपकी पत्नी में हो सकती है क्षमता, परन्तु आपके लड़कों में नहीं हो सकती है! तो परिवार वालों के मन की प्रसन्नता सुरक्षित रखना भी आवश्यक है! अन्यथा वे लोग आपको शांति से नहीं जीने देंगे! हाँ, आप उनको पर्याप्त सुख-सुविधा दोगे तभी वे आपको सुख-शांति देंगे! सभा में से : पूरी सुख-सुविधा देने पर भी शांति से नहीं जीने देते हैं! महाराजश्री : यह बात तो खूब कही! उन लोगों से आप ज्यादा सुख भोगते होंगे....इसकी ईर्ष्या आती होगी उन लोगों को! अथवा जितना सुख उनको मिलता होगा पर्याप्त नहीं लगता होगा! चूँकि भौतिक सुखों में कभी तृप्ति नहीं होती है। अतृप्ति की आग सुलगती ही रहती है। मेरे कहने का तात्पर्य तो इतना ही है कि परिवारवालों को जीवनयापन के लिए जो प्राथमिक आवश्यकताएँ होती हैं, उन आवश्यकताओं में बाधा पैदा नहीं होनी चाहिए। इस प्रकार आप दीन-अनाथों की सेवा करते रहें, गुणवान् पुरुषों की भक्ति करते रहें। यदि परिवार के लोग, उनकी आवश्यकताएँ पूर्ण होने पर भी आपको तीर्थयात्रा नहीं करने दें तो आप परिवार वालों की बातें नहीं सुनना। आपको परेशान करें तो भी आप मत झुकना। करना भी नहीं : करने देना भी नहीं : हाँ, कुछ लोगों की ऐसी आदत होती है, वे स्वयं दीन-अनाथों की सेवा करते नहीं और दूसरों को करने देते नहीं! पैसा कमानेवाला कमाता है और सत्कार्य में खर्च करता है, नाराज दूसरे लोग होते हैं! कहते हैं : 'क्या इतना खर्च कर देते हो गरीबों के लिए, कुछ रूपये बैंक में जमा कराते रहो, आगे काम आयेंगे! इस प्रकार हर महीने आप साधुसन्तों की भक्ति में सौ-दो सौ रूपये खर्च करते रहोगे तो बचेगा क्या? जब लड़की बड़ी होगी.... शादी करनी होगी.... तब रूपये कहाँ से लाओगे?' ___ करते हैं न ऐसी बातें घरवाले लोग? आपको जंचती भी होंगी ऐसी बातें? क्या आप उनको कहते हो कि 'यदि रूपये बचाने हों तो सिनेमा देखना बंद करो, होटलों में जाना बंद करो, पिकनिकें बंद करो, नये-नये कपड़े सिलवाने बंद करो! सौन्दर्य प्रसाधन खरीदने बंद करो.... जो रूपये बचे, बैंक में जमा कराते रहो! मैं तीर्थयात्रा करके पारलौकिक बैंक में जमा कराता रहता For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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