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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-४८ भगवान् उमास्वातीजी ने क्रोध के नुकसान बताते हुए कहा है : 'क्रोधः परितापकरः सर्वस्योद्वेगकारकः क्रोधः | वैरानुषङ्गजनकः क्रोधः क्रोधः सुगतिहन्ता ।।' १. क्रोध से मनुष्य के मन में परिताप पैदा होता है। यानी क्रोध करने से क्रोध करने वाले का मन तपता है। दिमाग तपता है, अशान्ति से भर जाता है। यह है मानसिक नुकसान । २८२ २. क्रोध करने से आस-पास के सभी लोगों को उद्वेग होता है। सभी के मन अशान्त होते हैं। वातावरण दूषित होता है, यह है पारिवारिक नुकसान । ३. क्रोध करने से दूसरे जीवों के साथ वैरभावना बंधती है। वैरभावना अनेक जन्मों तक जीव को दुःख देती है । यह है पारलौकिक नुकसान । ४. क्रोधान्ध व्यक्ति सद्गति में नहीं जाता, मर कर वह दुर्गति में जाता है । इसलिए क्रोध सद्गति का घातक बनता है। For Private And Personal Use Only क्रोध दूसरा आन्तरिकशत्रु है। बड़ा खतरनाक शत्रु है। उसका निग्रह करते हुए इन्द्रियविजेता बनना है। गृहस्थजीवन में मनुष्य सर्वथा तो क्रोधरहित नहीं बन सकता, परन्तु क्रोध की तीव्रता तो कम कर सकता है। तीव्र क्रोध नहीं होना चाहिए। क्रोध की तीव्रता कम करने का प्रयत्न करते रहना चाहिए। आज बस इतना ही
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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