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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ४८ २८१ क्रोध करना एक बात है, क्रोध हो जाना दूसरी बात है । क्रोध करना पड़े और करो, तो नुकसान नहीं, परन्तु क्रोध हो जाया करता है, तो नुकसान हुए बिना नहीं रहेगा। क्रोध हो जाना मनुष्य की कमजोरी है । क्रोध करना मनुष्य की एक प्रकार की समझदारी है । स्व- पर हित की दृष्टि से यदि मनुष्य क्रोध करता है तो उसका खयाल होता है कि मुझे कब क्रोध करना है, कितने समय तक करना है, किसके साथ करना है, कितनी मात्रा में करना है । वह यह भी जानता है कि क्रोध करने के बाद उसका निवारण कैसे किया जा सकता है । क्रोध से यदि विपरीत असर पैदा हो गया तो उसको कैसे मिटाया जा सकता है। गुस्से का परिणाम : पारावार दुःख : ऐसी क्रोध करने की कला प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम तो आपको 'क्रोध मेरा आन्तरिक शत्रु है,' इस बात को अच्छी तरह समझ लेना होगा। अच्छी तरह समझ लेने के बाद क्रोध के प्रभाव से मुक्त होने का प्रयत्न करना होगा । चूंकि अपनी आत्मा अनन्त जन्मों से, इन आन्तरिक शत्रुओं के घेरे में फंसी हुई है। अपनी आत्मा पर क्रोधादि शत्रुओं का प्रबल प्रभाव छाया हुआ है । उस प्रभाव को नष्ट कर देना है । इसलिए क्रोध से होने वाले अनर्थों का, नुकसानों का यथार्थ भान होना चाहिए। क्रोध होने के कारणों का यथार्थ ज्ञान होना चाहिए। जिन-जिन कारणों से क्रोध होता है, उन कारणों का ज्ञान होने से अपन क्रोध से बच सकते हैं । जिनको बात-बात में क्रोध हो जाता है, जिनको मामूली प्रतिकूलता में भी क्रोध हो जाता है, जिनको सामान्य प्रसंगों में भी क्रोध आ जाता है - उन सब को अनुभव होगा ही कि उनको कितने नुकसान हुए हैं। किसी भी क्षेत्र का मनुष्य हो, क्रोध से उसने नुकसान ही पाया होगा । आर्थिक नुकसान, पारिवारिक नुकसान, मानसिक नुकसान और शारीरिक नुकसान। अभी-अभी मैंने इसी नगर की एक घटना सुनी। एक लड़का जुआ खेलने की आदत में फंस गया था। उसके पिता ने उसको एक दिन थोड़ा सा उपालंभ दिया। लड़के को गुस्सा आ गया । घर छोड़ कर निकल गया .... और ट्रेन की पटरी पर जाकर सो गया.... गाड़ी के नीचे कट गया.... । इस प्रकार गुस्से में आकर कई महिलाएँ भी आत्महत्या कर लेती हैं न? जहर पीकर मर जाती हैं न? For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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