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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-४६ २६४ कैसे भी आप अपने भीतर जाकर देखो। अपने मन में बैठे उन काम-क्रोध आदि शत्रुओं को देखो | मन में से जितने भी विचार निकलते हैं वे सभी विचार इन काम-क्रोधादि से प्रबावित होकर ही निकलते हैं - ऐसा मालूम होगा। कोई विचार कामवासना से प्रचुर होता है तो कोई विचार क्रोध से भरा हुआ होता है। कोई विचार लोभ से आवृत्त होता है तो कोई विचार मद से उन्मत्त होता है! कोई विचार मान से रंगा हुआ होता है तो कोई विचार हर्ष से उछलता हुआ होता है! इस प्रकार समग्र मनःसृष्टि पर इन छह शत्रुओं के गिरोह का प्रभाव प्रस्थापित है। भीतरी शत्रुओं को समझो : ये शत्रु अपने साथ कौन-कौन सा शत्रुतापूर्ण व्यवहार करते हैं, क्या आप जानते हो? अपना कैसा कैसा अहित करते हैं वे शत्रु, क्या आप जानते हो? जान लो, अच्छी तरह जान लो। मित्रों के रूप में बैठे हुए शत्रुओं का परिचय प्राप्त कर लो। ___ पहला शत्रु है काम | काम यानी जातीय वासना । काम यानी अब्रह्मसेवन की इच्छा | यह कामवासना सजातीय और विजातीय, दोनों प्रकार के जीवों के विषय में हो सकती है। पुरुष को स्त्रीभोग की जैसे इच्छा होती है वैसे पुरुषभोग की भी इच्छा हो सकती है। यह कामेच्छा और विषयोपभोग जीवात्मा को प्रिय लगते हैं। काम की यही विशेषता है कि वह जीवात्मा को पहले महसूस नहीं होने देता है कि 'यह शत्रु है.... पहले तो उसे सुख का आभास देता है परन्तु बाद में दुःखी-दुःखी कर देगा।' __ कामेच्छा जाग्रत होती है और मन चंचल बनता है। कामेच्छा तीव्र बनती जाती है और मन की अस्थिरता बढ़ती जाती है। विषयोपभोग कर लेने से क्षणिक तृप्ति का अनुभव होता है... परन्तु यह तृप्ति का अनुभव भी एक धोखा ही है। इस क्षणिक तृप्ति को मनुष्य सुख मान लेता है! सुखानुभव समझ लेता है। वह सुखानुभव तो उस कुत्ते के सुखानुभव जैसा अनुभव है। कभी कुत्ते के मुँह में हड्डी का टुकड़ा आ जाता है, कुत्ता उस हड्डी को चबाने का चूसने का प्रयत्न करता है... हड्डी तो नहीं टूटती है परन्तु उसके मुँह में घाव जरूर हो जाता है! उस घाव में से खून रिसता है, टपकता है....कुत्ता समझता है कि हड्डी में से रस टपकता है....! अपना खून गले उतारता जाता है और सुखानुभव करता है! For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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