SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ प्रवचन-२६ में कहीं-कहीं यह परम्परा देखने को मिलती है। सौ-सौ साल से एक ही कपड़े की पीढ़ी | दादा ने व्यवसाय शुरू किया था, पिता ने उसी व्यवसाय को किया और पुत्र भी उसी व्यवसाय में संलग्न है । अब उसका पुत्र भी उसी दुकान पर बैठेगा। कपड़े की दुकान है, कपड़े का धंधा कोई निन्दनीय धंधा नहीं, सज्जनों के समाज में मान्य और इज्जतवाला व्यवसाय गिना जाता है। सोने-चाँदी का व्यवसाय, हीरे मोती वगैरह का व्यवसाय, बरतनों का व्यवसाय वगैरह शिष्टपुरुषों में संमत व्यवसाय हैं। वैसे राज्य में कुल-परम्परा से मंत्रीपद चला आता है, पुरोहितपद या नगरवेष्ठि का पद चला आता है। तो उसी पद को, राज्यसेवा को ठुकराना नहीं चाहिए | जब देश में राजाशाही थी तब ऐसी परंपराएँ चलती रहती थीं। मंत्रीपद स्वर्गस्थ मंत्री के पुत्र को ही दिया जाता था। यदि स्वर्गस्थ मंत्री को कोई पुत्र नहीं होता तो फिर दूसरे की पसंदगी होती थी। जब तक पुत्र हो, उसी को मंत्रीपद दिया जाता था। कभी-कभी तो योग्यता भी नहीं देखी जाती थी। कुल की खानदानी....कुलीनता ही योग्यता का मापदंड बन जाती थी। स्थूलभद्रजी के वैराग्य का कारण : आप लोग जानते हो न स्थूलभद्रजी का नाम? स्थूलभद्र के पिताजी शकटाल, मगधसम्राट नंदराज के महामंत्री थे। जब महामंत्री की षडयन्त्र के द्वारा हत्या हो गई थी, उस समय स्थूलभद्र तो मगध-नृत्यांगना कोशा के विलासभवन में थे। बारह साल से कोशा के पास थे। कोशा के प्रेम में ऐसे दीवाने हो गये थे कि बारह साल तक अपने घर पर भी नहीं गये थे। परन्तु महामंत्री की हत्या से महामंत्रीपद खाली पड़ा था। राजा ने महामंत्री के छोटे पुत्र श्रीयक को मंत्रीपद स्वीकार करने के लिए कहा, तब श्रीयक ने कहा : 'महाराजा, मंत्रीपद के अधिकारी मेरे ज्येष्ठ भ्राता स्थूलभद्र हैं।' 'तेरा बड़ा भाई है क्या? कहाँ है? मैंने तो उसको देखा तक नहीं है।' राजा ने आश्चर्य व्यक्त किया। बात भी सही थी, स्थूलभद्र जैसे अपने घर पर नहीं गये थे, वैसे राजदरबार में भी नहीं गये थे कभी। वे तो कोशा के स्नेहपाश मे जकड़े हुए थे। श्रीयक ने जो बात थी, कह दी : 'महाराजा, वे तो बारह साल से कोशा के घर पर ही हैं, अपने घर पर आते ही नहीं।' राजा ने स्थूलभद्रजी को बुलावा भेजा। राजपुरुषों ने कोशा के घर पर जाकर नंदराजा का आदेश सुनाया। राजाज्ञा का पालन करना नितान्त आवश्यक था, For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy