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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ३८ १७० उपद्रव अनेक प्रकार के होते हैं। आर्थिक, पारिवारिक, सामाजिक, राजकीय, शारीरिक और मानसिक .... कई प्रकार के उपद्रव होते हैं संसार में। किसी भी उपद्रव में आप फंसें नहीं, वैसे सावधान, सतर्क रहना चाहिए । इस सावधानी को, सतर्कता ग्रन्थकार ने 'भय' कहा है । ऐसा भय होना ही चाहिए । कुछ उपद्रव तात्कालिक पैदा होते हैं, कुछ उपद्रव कालान्तर से उत्पन्न होते हैं, तो कुछ उपद्रव जन्मान्तर में आते हैं! इन सभी उपद्रवों से बचने के लिए सावधानी से जीवन जीना होगा। ऐसा एक भी आचरण अपना नहीं होना चाहिए कि जिससे अनेक उपद्रव अपने को घेर लें और जीवन को नष्ट कर डालें। बताऊँगा, जिससे आप उन दुराचरणों से बच सकें और निरूपद्रवी जीवन जी सकें। निरूपद्रवी जीवन पसन्द है न? हाँ, जिन को उपद्रवपूर्ण जीवन पसन्द होगा उनको मेरी बातें पसन्द नहीं आयेगी! अन्याय यानी विपत्ति को निमंत्रण देना : पहली बात है अन्यायपूर्ण व्यवहार की । मान लो कि आपके पास छोटी-बड़ी कोई सत्ता है अथवा आप धनवान हो, आपने यदि दूसरे लोगों के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार किया तो संभव है कि तत्काल आपको सफलता मिल भी जाय, परन्तु एक न एक दिन तो आप संकट में फँस ही जाओगे । चूंकि आपने जिन-जिन के साथ अन्याय किया होगा, दमन किया होगा, अनीति की होगी, उन सभी के मन में आपके प्रति घृणा, द्वेष .... तिरस्कार... भरा हुआ होगा, परन्तु वे शक्ति के अभाव में दबे हुए होंगे, वे चाहते होंगे कि कब ऐसी शक्ति, ऐसे संयोग आयें.... और अन्याय का बदला ले लें! अन्याय करने वाले सत्ताधीश अथवा धनवान् लोग भरोसे में रह जाते हैं और घोर आपत्ति में फँस जाते हैं । जनम से कौन गुनहगार होता है ? चंबल के प्रसिद्ध डाकुओं में मानसिंह और माधोसिंह के नाम आते हैं । वे जन्म से डाकू नहीं थे। उनके साथ गाँव के कुछ धनवानों ने, कुछ ठाकुरों ने अन्याय किया था, दुर्व्यवहार किया था । अत्यंत नम्रता से समझाने पर भी नहीं समझे थे और ‘तेरे से जो हो, कर लेना...' ऐसे शब्द सुनाये थे.... तब उन्होंने बगावत कर दी थी, वे बागी बन गये थे । बागी बनने के बाद उन्होंने सर्वप्रथम उन अन्याय एवं क्रूर व्यवहार करने वालों की ही हत्या कर डाली थी! हत्या के पूर्व जब उन धनवानों को और सत्ताधीशों को पता लग गया था कि 'मानसिंह बागी बन गया है... माधोसिंह बागी बन गया है....' तो वे घबराने लगे थे....। For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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