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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३८ १६७ काम हो जाय!, कुछ लोग शादी करने पर भी अपनी तीव्र कामवासना को संतुष्ट करने के लिए वेश्यागामी बनते हैं और अपने तन-मन को नष्ट करते हैं। हाँ, वेश्यागामी पुरुष अनेक रोगों के शिकार बन जाते हैं। रुपये-पैसे से भी बरबाद हो जाते हैं। अनेक व्यसनों का सेवन करने लगते हैं। वेश्या : धोबी का पत्थर : एकमात्र शारीरिक सुख पाने की लालसा में ऐसे लोग कितनी बुराइयों में फँस जाते हैं? वेश्या का प्रेम वास्तव में प्रेम नहीं होता....उनको तो मतलब होता है रुपयों से! ज्ञानी पुरुषों की दृष्टि में वेश्या धोबी के पत्थर जैसी होती है! धोबी जिस पत्थर पर कपड़े धोता है, उस पत्थर पर दूसरे भी लोग कपड़े धोते हैं न? वैसे वेश्या कोई एक पुरुष का संग नहीं करती। अनेक पुरुष उससे शारीरिक संबंध करते हैं.... यानी वेश्या अनेक पुरुषों की भोग्या होती है। ऐसी स्त्री के साथ कुलीन और सज्जन पुरुष को संग नहीं करना चाहिए। वेश्या : कुत्तों का झेंपू : ___ कुत्तों का झेंपू देखा है? झेंपू में लोग रोटी के टुकड़े डालते हैं और अनेक कुत्ते उसमें मुँह डालकर खाते हैं! झेंपू एक और कुत्ते अनेक। वैसे स्त्री एक और पुरुष अनेक! क्या बुद्धिमान सज्जन पुरुष ऐसी स्त्री में आसक्त बन सकता है? कभी भूल से भी उस रास्ते मत जाना | इस गलत रास्ते जो-जो लोग गये उन्होंने अपना सब कुछ खो दिया है। प्राचीन काल के भी ऐसे अनेक दृष्टांत पढ़ने में आते हैं कि वेश्या के वहाँ जाकर, वेश्या को खुश करने के लिए लाखों रूपये देने पर भी एक दिन वेश्या के घर से उसको अपमानित कर निकाला गया! वर्तमानकाल के भी ऐसे प्रसंग सुनने को मिलते हैं। __ वेश्या को कितना भी धन दो, उसको कितना भी प्रेम दो, वह तो तुम्हारी होनेवाली नहीं! चूँकि वह वेश्या है! किसी एक पुरुष से वह संतुष्ट रह ही नहीं सकती। यदि वैसे ही जीवन जीना होता तो वह वेश्या का व्यवसाय क्यों अपनाती? उसका मन अनेक पुरुषों का संग चाहता रहता है। जो भी उसके यहाँ जाता है, वेश्या उससे प्रेम करेगी, आदर देगी, पुरुष का मन बहलायेगी....परन्तु यह सब मात्र धनप्राप्ति के लिए करती है। पुरुष को वह अपना शरीर सौंप देगी! उसको धन चाहिए! यदि किसी पुरुष ने आसक्ति कर ली वेश्या में, तो उसकी दुर्दशा ही होगी। या तो अपमानित होगा अथवा मौत ही होगी। पुरुष उस पर कितना भी उपकार करे, वेश्या उसको 'अपना' नहीं For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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